Monday, 28 March 2016

गया था मन्दिर में दुआओं की ख़ातिर मैं


कभी कुछ दिन ऐसे भी गुजारे जाते हैं,
फूलों में हाथ डालो काँटे हाथ आते हैं।
गया था मन्दिर में दुआओं की ख़ातिर मैं,
वहाँ भी उपदेशक सिर्फ किस्से सुनाते हैं।
अब सोचता हूँ किस सिम्त किस दिशा जाऊँ,
जहाँ जाता हूँ लोग मुझे अलग छांटते हैं।
मैं खुद ही लुट जाऊँगा कोई प्यार से तो बोले,
इस दुनिया के लोग अकड़ भी दिखाते हैं बलि भी मांगते हैं।
सियासत के खेल से बच सको जितना बचना  "प्रवेश",
इसमें आदमी से ही आदमी को काटते हैं।

Friday, 25 March 2016

गीले बालों को उसने झटका यूँ सलीके से



गीले बालों को उसने झटका यूँ सलीके से ,
सुलगते अरमानों पे पड़ गए ठंडे छींटें से।
संगमरमरी बदन पे डाले उसने जो मलमली कपड़े,
देखा है उसको आज हर शख्स ने अलग तरीके  से।
गुजरा है वो यहाँ से हर चीज़ गवाही देती है,
वीरान सड़कें, उजड़े गुलशन ये गुल फीके से।
सदाबहार किसको कहते हैं हमने जाना, जबसे देखे ,
ऊँचा कद , पतली गरदन , चढ़ता यौवन, नैन-नक्श तीखे से।

Thursday, 24 March 2016

पहले तुझे मेरी कद्र हो जाती



मेरे मरने से पहले तुझे मेरी कद्र हो जाती,
तो शायद थोड़ी और लम्बी मेरी उम्र हो जाती
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तेरे मेरे बीच बस दो गज का फासला है,
तू मुझको समझ लेती तो मुझको नसीब ये कब्र न होती
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रोक लेती मेरे आंसुओं को तू मेरे मरने से पहले,
मेरी कब्र पर बैठकर तू इस कदर ना रोती
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मुझको दफ़नाने से पहले गर तू सीने से लगा लेती,
मैं उठकर तेरा हो जाता तू मेरी हो जाती
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