Thursday, 11 February 2016

ज़िन्दगी आज लग रही है बोझ भारी है



ज़िन्दगी आज लग रही है बोझ भारी है
ठिकाने लगा दे मौला सड़क पर लाश हमारी है
,
रोता रहा हूँ अब तलक हर वक़्त मैं
अलविदा अब रोने की लोगो की बारी है
,
अब खुश हैं सब लोग भूल गए मुझको
छुप-छुप कर रोती अब मेरी माँ बेचारी है
,
मौला तूने अब तक इन्साफ किया ही कब है
मेरे अपनों को हिम्मत बख्श अब तेरी जिम्मेदारी है
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