राजनीति नीति नहीं है, अनीति है। न मालूम किन बेईमानों ने उसे राजनीति का नाम दे दिया! नीति तो उसमें कुछ भी नहीं है। राजनीति है : शुद्ध बेईमानी की कला।
मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे ने उससे पूछा कि ‘पापा, आप बड़े राजनीति के खेल खेलते हैं; राजनीति क्या है?’ तो उसने कहा कि ‘शब्दों में कहना कठिन है, यह बड़ी रहस्यमय बात है। मगर अनुभव से तुझे समझा सकता हूँ।' उसने कहा : ‘समझाइए।'
मुल्ला ने बेटे को कहा : 'चढ़ सीढ़ी पर।' सीढ़ी लगी थी दीवाल से, तो बेटा चढ़ गया।
जब ऊपर के सोपान पर पहूंच गया, तो नसरुद्दीन ने कहा : ‘कुद जा, मैं सम्हाल लूंगा।'
जरा झिझका। सिढ़ी ऊंची थी; कूदे और पिता के हाथ से छूट जाए, गिर जाए, तो हाथ-पैर टूट जायेंगे।
नसरुद्दीन ने कहा : ‘अरे अपने बाप पर भरोसा नहीं करता! कूद जा, कूद जा बेटा।'
जब बार -बार कहा, तो बेटा कूद गया। नसरुद्दीन हट कर खड़ा हो गया। दानों घूटने छिल गये; नाक से खून गिरने लगा।
बेटे ने कहा कि ‘मतलब!’
तो नसरुद्दीन ने कहा: ‘यह राजनीति है बेटा; अपने बाप पर भी भरोसा न करना। भूल करके भी किसी पर भरोसा न करना - यह पहला पाठ।'
राजनीति बड़ी चालबाज हिंसा है। कहीं खून दिखाई नहीं पड़ता - और खून हो जाते हैं। हाथ नहीं रंगते - और हत्यायें हो जाती हैं।
दुनिया में एक और तरह के शासन की जरूरत है। राजनेता का नहीं -- विशेषज्ञ का; राजनेता का नहीं -- वैतानिक का; राजनेता का नहीं -- बुद्धिमत्ता का।
और तब दुनिया एक और तरह की दुनिया होगी।
ओशो
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