Wednesday, 13 April 2016

तुमसे जुड़ी हर बात याद आएगी


तुमसे जुड़ी हर बात याद आएगी,
अपनी ये दूसरी मुलाकात याद आएगी।
लबों से ना हो पाई कोई भी बात,
मगर फिर भी ये बात याद आएगी।
गुजरा था हर लम्हा तुम्हारे दीदार में,
कितनी थी हसीन ये रात याद आएगी।
कदमों का फासला भी मीलों सा था,
ऐसे भी होती है मुलाकात याद आएगी।
दोनों के दिलों का हाल अलग-अलग था,
ये अलग अलग सवालों वाली बात याद आएगी।
कितनी थी बंदिशें और मजबूरी दिलों की,
मजबूरियों वाली ऐसी ये रात याद आएगी।
खुली जुल्फों में एक चाँद सा चेहरा ,
उस रात चाँद से हुई मुलाकात याद आएगी।
तुमसे जुड़ी हर बात याद आएगी,
अपनी ये दूसरी मुलाकात याद आएगी।

Tuesday, 12 April 2016

ये खूबसूरत आँखें फ़रेब हैं


ये खूबसूरत आँखें फ़रेब हैं और कुछ नहीं,
हम को इसी का ऐब है इसके सिवा कुछ नहीं।
ये क़ातिल निगाहें हमें जीने ही नहीं देती,
ये ज़हर हैं ये ही जाम इस के सिवा कुछ नहीं।
इनकी हल्की सी आहट से भी मैं मचल जाता हूँ,
यही दर्द है यही राहत इसके सिवा कुछ नहीं।
सदियों तड़प कर इनका इंतजार करता रहा हूँ मैं,
ये आई तो दो पल ठहरी भी दो पल इसके सिवा कुछ नहीं।
लोगों ने तो इसको ख़ुदा तक कह डाला मगर,
इस मोहब्बत का मजा दो पल सज़ा उम्रभर इसके सिवा कुछ नहीं

Monday, 11 April 2016

स्व को खोकर ही उसकी प्राप्ति सम्भव

परमात्मा की खोज में, अंततः वह सौभाग्य की घड़ी भी आ जाती है जब परमात्मा तो मिल जाता है, लेकिन खोजने वाला खो जाता है। जो निकला था खोजने, उसकी तो रूपरेखा भी नहीं बचती; और जिसे खोजने निकला था, जिसकी रूपरेखा भी पता नहीं थी, बस वही केवल शेष रह जाता है। साधक जब खो जाता है तभी सिद्धत्व उपलब्ध हो जाता है।
यह खोज बड़ी अनूठी है! यहां खोना ही पाने का मार्ग है। खोज में अगर तुमने अपने को बचाया, तो तुम भटकते ही रहोगे, पा न सकोगे।
संसार की सब चीजें तुमने अपने में भर लीं, यह परमात्मा की कमी खटकती है। अहंकार को चुनौती लगती है कि अगर किसी ने परमात्मा को कभी पाया है तो मैं भी पाकर रहूंगा। जिसने परमात्मा को चुनौती की तरह समझा और जीवन की अन्य महत्त्वाकांक्षाओं में एक महत्त्वाकांक्षा बनाया, वह खाली हाथ ही रहेगा।
पहली और आखिरी बात खयाल रखने जैसी है कि तुम अपने को मिटाने में लगना -- वही परमात्मा की खोज है। परमात्मा को खोजने की फिक्र ही छोड़ दो। वह तो मिला ही हुआ है; तुम सिर्फ अपने को मिटा लो। तुम्हारा खाली हो जाना ही तुम्हारी पात्रता है। तुम्हारा भरा होना ही तुम्हारी अपात्रता है।
"ओशो"