परमात्मा की खोज में, अंततः वह सौभाग्य की घड़ी भी आ जाती है जब परमात्मा तो मिल जाता है, लेकिन खोजने वाला खो जाता है। जो निकला था खोजने, उसकी तो रूपरेखा भी नहीं बचती; और जिसे खोजने निकला था, जिसकी रूपरेखा भी पता नहीं थी, बस वही केवल शेष रह जाता है। साधक जब खो जाता है तभी सिद्धत्व उपलब्ध हो जाता है।
यह खोज बड़ी अनूठी है! यहां खोना ही पाने का मार्ग है। खोज में अगर तुमने अपने को बचाया, तो तुम भटकते ही रहोगे, पा न सकोगे।
संसार की सब चीजें तुमने अपने में भर लीं, यह परमात्मा की कमी खटकती है। अहंकार को चुनौती लगती है कि अगर किसी ने परमात्मा को कभी पाया है तो मैं भी पाकर रहूंगा। जिसने परमात्मा को चुनौती की तरह समझा और जीवन की अन्य महत्त्वाकांक्षाओं में एक महत्त्वाकांक्षा बनाया, वह खाली हाथ ही रहेगा।
पहली और आखिरी बात खयाल रखने जैसी है कि तुम अपने को मिटाने में लगना -- वही परमात्मा की खोज है। परमात्मा को खोजने की फिक्र ही छोड़ दो। वह तो मिला ही हुआ है; तुम सिर्फ अपने को मिटा लो। तुम्हारा खाली हो जाना ही तुम्हारी पात्रता है। तुम्हारा भरा होना ही तुम्हारी अपात्रता है।
"ओशो"
यह खोज बड़ी अनूठी है! यहां खोना ही पाने का मार्ग है। खोज में अगर तुमने अपने को बचाया, तो तुम भटकते ही रहोगे, पा न सकोगे।
संसार की सब चीजें तुमने अपने में भर लीं, यह परमात्मा की कमी खटकती है। अहंकार को चुनौती लगती है कि अगर किसी ने परमात्मा को कभी पाया है तो मैं भी पाकर रहूंगा। जिसने परमात्मा को चुनौती की तरह समझा और जीवन की अन्य महत्त्वाकांक्षाओं में एक महत्त्वाकांक्षा बनाया, वह खाली हाथ ही रहेगा।
पहली और आखिरी बात खयाल रखने जैसी है कि तुम अपने को मिटाने में लगना -- वही परमात्मा की खोज है। परमात्मा को खोजने की फिक्र ही छोड़ दो। वह तो मिला ही हुआ है; तुम सिर्फ अपने को मिटा लो। तुम्हारा खाली हो जाना ही तुम्हारी पात्रता है। तुम्हारा भरा होना ही तुम्हारी अपात्रता है।
"ओशो"
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