Tuesday, 10 November 2015

अभी कमउम्र छोटा बच्चा हूँ मैं

शायरी की दूनिया में कच्चा हूँ मैं,
अभी कमउम्र छोटा बच्चा हूँ मैं
झूठी सनसनीयों की दौड़ लगी है,
पर खबरी अभी सच्चा हूँ मैं,
खुशियों की दूकान पर हूँ, 
लेकिन गम के बादलों का गुच्छा हूँ मैं 
Parvesh Kumar 

तुझे नींद कहाँ फिर आएगी


जीवन है वरदान ख़ुदा का
खेल न खेलो इसके साथ,
दौलत के पीछे भागने से तो
प्यार भी ना आयेगा तेरे हाथ.
सोने चांदी के बर्तनों में
ज़िन्दगी भर नहीं खाया जाता,
जो है तकदीर में वो ही मिलेगा
हर चीज के लिए मन नहीं ललचाया जाता.
गर जानते हो मेहनत करना तो
सब कुछ मिलेगा इस धरती पर, 
गर लालच में जीते रहे तो
लकड़ी तक ना मिलेगी अर्थी पर.
गर दौलत मिल गई बिन मेहनत तो
तुझे नींद कहाँ फिर आएगी,
उठ उठ कर रातों में तू
नींद की गोलियाँ खाएगी.
पैसों के पीछे भाग मत तू
ख्वाहिशें तेरी बढ़ जाएगी,
पैसों का क्या करेगी तू
जब अपनों से दुरी बढ़ जाएगी.
बात ये तू ध्यान रखना
समझाऊंगा नहीं हर बार मैं,
कोशिश करले पैसों से बेशक
पर ज़िन्दगी चलती है प्यार से.
पैसों के पीछे पागल होकर
सबको पछतावा होता है,
ऊँची हो दूकान जहाँ पर
वहां फीका पकवान होता है


Parvesh Kumar

माँ का है अस्तित्व धुंधलाया

             माँ
ना अब आबाद हूँ ना कल आबाद था
आज भी बर्बाद हूँ कल भी बर्बाद था,
फर्क सिर्फ इतना है कल और आज में कि
आज गिरफ्तार हूँ और कल आज़ाद था.
पहले मिट्टी खाने पर माँ पीटती थी फिर भी
मिट्टी खाने में लगती थी लाजवाब,
और अब बीवी की पीटाई का भी डर नहीं फिर भी
एक-एक पल का देना पड़ता है हिसाब.
पहले माँ का गुस्सा बुरा लगता था पर
शरारतों से नहीं आते थे हम बाज,
और अब बीवी भी गुस्सा करती है पर
हम कहते हैं गुस्सा उसका है जायज.
पहले माँ के हाथ का खाना खाकर कहते थे
के बाहर के खाने की कोई औकात नहीं,
और अब जबसे बीवी के हाथ का खाया है
माँ को कहते हैं, ‘माँ तुझमे ऐसी बात नहीं’.
जब से हुई है शादी हमारी यारों
माँ का है अस्तित्व धुंधलाया,
पहले माँ से ज्यादा हमें नहीं थी कोई प्यारी
पर अब जाने बीवी ने जाने कौनसा जाल बिछाया.
अब जब कभी माँ याद आती है तो सोचता हूँ कि
दुनिया में माँ जैसी कोई और शख्सियत नहीं,
फिर भी बच्चों की शादी के बाद इस कलयुग में
इस “माँ” की ही कोई एहमियत नहीं


Parvesh Kumar