Tuesday, 10 November 2015

माँ का है अस्तित्व धुंधलाया

             माँ
ना अब आबाद हूँ ना कल आबाद था
आज भी बर्बाद हूँ कल भी बर्बाद था,
फर्क सिर्फ इतना है कल और आज में कि
आज गिरफ्तार हूँ और कल आज़ाद था.
पहले मिट्टी खाने पर माँ पीटती थी फिर भी
मिट्टी खाने में लगती थी लाजवाब,
और अब बीवी की पीटाई का भी डर नहीं फिर भी
एक-एक पल का देना पड़ता है हिसाब.
पहले माँ का गुस्सा बुरा लगता था पर
शरारतों से नहीं आते थे हम बाज,
और अब बीवी भी गुस्सा करती है पर
हम कहते हैं गुस्सा उसका है जायज.
पहले माँ के हाथ का खाना खाकर कहते थे
के बाहर के खाने की कोई औकात नहीं,
और अब जबसे बीवी के हाथ का खाया है
माँ को कहते हैं, ‘माँ तुझमे ऐसी बात नहीं’.
जब से हुई है शादी हमारी यारों
माँ का है अस्तित्व धुंधलाया,
पहले माँ से ज्यादा हमें नहीं थी कोई प्यारी
पर अब जाने बीवी ने जाने कौनसा जाल बिछाया.
अब जब कभी माँ याद आती है तो सोचता हूँ कि
दुनिया में माँ जैसी कोई और शख्सियत नहीं,
फिर भी बच्चों की शादी के बाद इस कलयुग में
इस “माँ” की ही कोई एहमियत नहीं


Parvesh Kumar 

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