Tuesday, 12 January 2016

व्यस्त व्यक्तियों के लिये ध्यान

जब आप सक्रिय ध्यान विधियों का प्रयोग नहीं कर सकते, आप के लिये दो साधारण लेकिन प्रभावशाली निष्क्रिय विधियां उपलब्ध हैं। ध्यान रहे कि इसके इलावा आप हमारे साप्ताहिक स्तंभ ´इस सप्ताह के ध्यान´ और ´व्यस्त व्यक्तियों´ के लिये में और भी विधियां पायेंगे।
1. श्वास को देखना
श्वास को देखना एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग कहीं भी, किसी भी समय किया जा सकता है, तब भी जब आप के पास केवल कुछ मिनटों का समय हो। आती जाती श्वास के साथ आपको केवल छाती या पेट के उतार-चढ़ाव के प्रति सजग होना है। या फिर इस विधि को आजमायें:
प्रथम चरण: भीतर जाती श्वास को देखना
अपनी आंखें बंद करें अपने श्वास पर ध्यान दें। पहले श्वास के भीतर आने पर, जहां से यह आपके नासापुटों में प्रवेश करता है, फिर आपके फेफड़ों तक।
दूसरा चरण: इससे आगे आने वाले अंतराल पर ध्यान
श्वास के भीतर आने के तथा बाहर जाने के बीच एक अंतराल आता है। यह अत्यंत मूल्यवान है। इस अंतराल को देखें।
तीसरा चरण: बाहर जाती श्वास पर ध्यान
अब प्रश्वास को देखें
चौथा चरण: इससे आगे आने वाले अंतराल पर ध्यान
प्रश्वास के अंत में दूसरा अंतराल आता है: उस अंतराल को देखें। इन चारों चरणों को दो से तीन बार दोहरायें- श्वसन-क्रिया के चक्र को देखते हुए, इसे किसी भी तरह बदलने के प्रयास के बिना, बस केवल नैसर्गिक लय के साथ।
पांचवां चरण: श्वासों में गिनती
अब गिनना प्रारंभ करें: भीतर जाती श्वास - गिनें, एक (प्रश्वास को न गिनें) भीतर जाती श्वास - दो; और ऐसे ही गिनते जायें दस तक। फिर दस से एक तक गिनें। कई बार आप श्वास को देखना भूल सकते हैं या दस से अधिक गिन सकते हैं। फिर एक से गिनना शुरू करें।
इन दो बातों का ध्यान रखना होगा: सजग रहना, विशेषतया श्वास की शुरुआत व अंत के बीच के अंतराल के प्रति। उस अंतराल का अनुभव हैं आप, आपका अंतरतम केंद्र, आपका अंतस। और दूसरी बात: गिनते जायें परंतु दस से अधिक नहीं; फिर एक पर लौट आयें; और केवल भीतर जाती श्वास को ही गिनें।
इनसे सजगता बढ़ने में सहायता मिलती है। आपको सजग रहना होगा नहीं तो आप बाहर जाती श्वास को गिनने लगेंगे या फिर दस से ऊपर निकल जायेंगे।

यदि आपको यह ध्यान विधि पसंद आती है तो इसे जारी रखें। यह बहुमूल्य है।” 
ओशो

Monday, 11 January 2016

मयखाने में ना जाएँ तो कहाँ जाए हम

मयखाने में ना जाएँ तो कहाँ जाए हम,
जाम ना पियें तो दर्दे-ए-दिल कैसे भुलाएँ हम
,
जरा वो लोग भी जी कर देखले ज़िन्दगी मेरी
जो कहते हैं तुझको हुआ है क्या गम
,
क्या करूँ भरोसा, कैसे करूँ ऐतबार
ऐ ज़िन्दगी तूने मुझको रुलाया ही है हरदम
,
वफ़ा की चाहत थी मगर मिली मुझे बेवफाई
या ख़ुदा ना नसीब हो किसी को ऐसे सनम
,
शराब भी गले से नहीं उतरती अब
मौत आ भी जा अब तू ना कर सितम
,
बहूत जी चूका अब कल मर जाएगा ‘प्रवेश’
और भी देना चाहो तो आज दे लो गम

Sunday, 10 January 2016

आज तुझको चुनना है रास्ता

हे मनुष्य चल मंजिल की और
यूँ बैठकर इंतजार करना
कौनसी अकल की बात है,
चल उठ बढ़ा कदम
ख्वाबों को बाँहों में भरके
नहीं तो एक जैसे दिन हैं
और एक जैसी रात है
एक और है आसान डगर
एक और कांटो भरा सफ़र
आज तुझको चुनना है रास्ता
कि कौन है तेरा हमसफ़र |