हे मनुष्य चल मंजिल की और
यूँ बैठकर इंतजार करना
कौनसी अकल की बात है,
चल उठ बढ़ा कदम
ख्वाबों को बाँहों में भरके
नहीं तो एक जैसे दिन हैं
और एक जैसी रात है
एक और है आसान डगर
एक और कांटो भरा सफ़र
आज तुझको चुनना है रास्ता
कि कौन है तेरा हमसफ़र |
यूँ बैठकर इंतजार करना
कौनसी अकल की बात है,
चल उठ बढ़ा कदम
ख्वाबों को बाँहों में भरके
नहीं तो एक जैसे दिन हैं
और एक जैसी रात है
एक और है आसान डगर
एक और कांटो भरा सफ़र
आज तुझको चुनना है रास्ता
कि कौन है तेरा हमसफ़र |
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