Friday, 19 February 2016

परदेस मुझे कहीं जाने ही नहीं देता वरना



ऐ घर मुझको आज तेरी बहुत याद आई है,
आईने में देखा मैंने मेरी आँखें भीग आईं हैं।
ये परदेस मुझे कहीं जाने ही नहीं देता वरना
घर आने की तमन्ना दिल में बहुत बार आई है।
वहाँ दुश्मन भी हैं लेकिन अपने भी बहुत हैं
यहाँ तो मेरे साथ सिर्फ मेरी परछाई है।
मचल जाता हूँ मैं जब याद घर की आती है,
अपनों से बिछड़ के रहना इसमें क्या भलाई है।
छिपा होता है हर अंधेरे के पीछे रोशन सवेरा
ये सोच कर लग जाता हूँ कि सब अस्थायी है।

Thursday, 18 February 2016

अब डाक्टर बुलाओ जो दवाई देगा



वो जो बिना माँगें सफाई देगा
गुनहगार होने की गवाही देगा।
ये सब साये हैं जो आस पास हैं
वक्त पर कोई नही दिखाई देगा।
बीमार का हाल तो सबने पूछ लिया
अब डाक्टर बुलाओ जो दवाई देगा।

Wednesday, 17 February 2016

राजनीति क्या है ?




राजनीति नीति नहीं है, अनीति है। न मालूम किन बेईमानों ने उसे राजनीति का नाम दे दिया! नीति तो उसमें कुछ भी नहीं है। राजनीति है : शुद्ध बेईमानी की कला।
मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे ने उससे पूछा कि पापा, आप बड़े राजनीति के खेल खेलते हैं; राजनीति क्या है?’ तो उसने कहा कि शब्दों में कहना कठिन है, यह बड़ी रहस्यमय बात है। मगर अनुभव से तुझे समझा सकता हूँ।' उसने कहा :समझाइए।'
मुल्ला ने बेटे को कहा : 'चढ़ सीढ़ी पर।' सीढ़ी लगी थी दीवाल से, तो बेटा चढ़ गया।
जब ऊपर के सोपान पर पहूंच गया, तो नसरुद्दीन ने कहा : कुद जा, मैं सम्हाल लूंगा।'
जरा झिझका। सिढ़ी ऊंची थी; कूदे और पिता के हाथ से छूट जाए, गिर जाए, तो हाथ-पैर टूट जायेंगे।
नसरुद्दीन ने कहा : अरे अपने बाप पर भरोसा नहीं करता! कूद जा, कूद जा बेटा।'
जब बार -बार कहा, तो बेटा कूद गया। नसरुद्दीन हट कर खड़ा हो गया। दानों घूटने छिल गये; नाक से खून गिरने लगा।
बेटे ने कहा कि मतलब!
तो नसरुद्दीन ने कहा: यह राजनीति है बेटा; अपने बाप पर भी भरोसा न करना। भूल करके भी किसी पर भरोसा न करना - यह पहला पाठ।'
राजनीति बड़ी चालबाज हिंसा है। कहीं खून दिखाई नहीं पड़ता - और खून हो जाते हैं। हाथ नहीं रंगते - और हत्यायें हो जाती हैं।
दुनिया में एक और तरह के शासन की जरूरत है। राजनेता का नहीं -- विशेषज्ञ का; राजनेता का नहीं -- वैतानिक का; राजनेता का नहीं -- बुद्धिमत्ता का।
और तब दुनिया एक और तरह की दुनिया होगी।
ओशो