Friday, 19 February 2016

परदेस मुझे कहीं जाने ही नहीं देता वरना



ऐ घर मुझको आज तेरी बहुत याद आई है,
आईने में देखा मैंने मेरी आँखें भीग आईं हैं।
ये परदेस मुझे कहीं जाने ही नहीं देता वरना
घर आने की तमन्ना दिल में बहुत बार आई है।
वहाँ दुश्मन भी हैं लेकिन अपने भी बहुत हैं
यहाँ तो मेरे साथ सिर्फ मेरी परछाई है।
मचल जाता हूँ मैं जब याद घर की आती है,
अपनों से बिछड़ के रहना इसमें क्या भलाई है।
छिपा होता है हर अंधेरे के पीछे रोशन सवेरा
ये सोच कर लग जाता हूँ कि सब अस्थायी है।

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