Wednesday, 27 January 2016

दिल मेरा ख़ाक का ढेर हो गया



रोना छोड़ दिया अब मयखाने में जाता हूँ,
मैकदे में जाकर अपने सारे गम भूलाता हूँ
,
जब तेरी यादों के मौसम आते हैं
मैं जमके फिर जाम पे जाम लगता हूँ
,
भीड़ में भी कोई अपना नज़र नहीं आता,
अब दीवारों को मैं अपने किस्से सुनाता हूँ
,
रौशनी में तेरी तस्वीर से बाते होती हैं
अंधेरों में तेरे नाम की आवाज़े लगाता हूँ
,
दिल मेरा ख़ाक का ढेर हो गया ‘प्रवेश’
अब अपनी राख को हवाओं में उडाता हूँ
|

No comments:

Post a Comment