मर ना सके, जिंदा भी
रह ना सके
हाले-दिल अपना हम किसी से कह ना सके,
बज्मों में मुस्कुराते हुए दिन बिता दिए
मगर रातों में हिज्र के गम सह न सके,
तू होती गर पास तो नींद आ जाती हमें
तेरे बिना मगर हम कभी भी सो न सके,
अपने दर्द को दबा के रख लिया सीने में
तुझे खुश देखा तो अपने गम पे रो ना सके,
एक उम्मीद है अब भी तेरे लौट आने की,
बस इसी इन्तजार में हम मौत के भी हो ना सके |
हाले-दिल अपना हम किसी से कह ना सके,
बज्मों में मुस्कुराते हुए दिन बिता दिए
मगर रातों में हिज्र के गम सह न सके,
तू होती गर पास तो नींद आ जाती हमें
तेरे बिना मगर हम कभी भी सो न सके,
अपने दर्द को दबा के रख लिया सीने में
तुझे खुश देखा तो अपने गम पे रो ना सके,
एक उम्मीद है अब भी तेरे लौट आने की,
बस इसी इन्तजार में हम मौत के भी हो ना सके |
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