Tuesday, 5 April 2016

मगर जोड़ के निशान बहुत हैं


अभी मेरे दिल में प्यार के अरमान बहुत हैं ,
ये अलग बात के हम इश्क़ से परेशान बहुत हैं।
बचपन में सुना था कि यहाँ भगवान बहुत हैं,
मगर अब जिधर देखता हूँ शैतान बहुत हैं।
जिस भी बस्ती जाता हूँ घर ही नहीं मिलते,
थोड़े बहुत मकान हैं बाकी शमशान बहुत हैं।
दिल बहुत टूटा दोस्ती में भी प्यार में भी,
जुड़ने को जुड़ गया मगर जोड़ के निशान बहुत हैं।
माँगने को तो ऐ ख़ुदा मैं तुमसे ये जहाँ माँग लूँ ,
मगर कागज़-कलम पास रहने दे इतने एहसान बहुत हैं।

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