Tuesday, 26 April 2016

गुमराह हो जाते है भीड़ में चलने वाले


ज़िन्दगी चाहे लाख धोखे दे तुम्हे
मंजिल की फिर भी आस रखना बेहतर है
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सोने को सो जाओ लेकिन याद रखना
बिन मकसद की ज़िन्दगी से मौत बेहतर है
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गुमराह हो जाते है भीड़ में चलने वाले
अकेले चल रहे हो अकेले चलना ही बेहतर है
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बिना रुकावट सीधे रास्तों पर चलना अच्छा है
गर ठोकर लग जाए तो और भी बेहतर है
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झूठ बोलने वाले निकल गए आगे तो जाने दो
तुम सच बोलकर पीछे हो ये भी बेहतर है
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खूदा भी इंसान होता तो कितना अच्छा होता
तुम इंसान होकर इंसान हो ये ख़ुदा से बेहतर है |

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