तुझे क्या मिलेगा
मेरे पास बैठ-बैठकर
मैं खुद फ़कीर हो गया दर-दर बैठ-बैठकर,
ज़िन्दगी ढूंढने चला था ज़िन्दगी ना मिली
थक गया मैं अब इधर-उधर बैठ-बैठकर,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब घूमा
हर जगह देखा मैंने माथा टेक- टेककर |
मैं खुद फ़कीर हो गया दर-दर बैठ-बैठकर,
ज़िन्दगी ढूंढने चला था ज़िन्दगी ना मिली
थक गया मैं अब इधर-उधर बैठ-बैठकर,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब घूमा
हर जगह देखा मैंने माथा टेक- टेककर |
No comments:
Post a Comment