हे प्रभु कलयुग में कौरव पांडव में बन जाए तो ठीक वरना,
हमें एक और कृष्ण देना हमें एक और महाभारत देना।
मैं सारी जिम्मेदारी औढ कर निकल तो लिया घर से,
भटक जाऊँ अगर तो प्रभु रात को यही इमारत देना।
जैसी भी है रूखी सूखी, रोटी अपने घर की ही भली है,
मुझे जितने भी जन्म देना मेरा देश मुझे भारत देना।
No comments:
Post a Comment