Friday, 26 February 2016

आया था तूफ़ान सिर्फ बचा हुआ हूँ मैं



अब जिंदा हूँ लेकिन मरा हुआ हूँ मैं
मुहब्बत के नाम से अब डरा हुआ हूँ मैं
,
सहरा में बिखरे पड़े है दिल के टुकड़े
गम-ए-तन्हाई से अब भरा हुआ हूँ मैं
,
मेरे सब अपने मुझे भूला चुके हैं यहाँ
बनके लाश अब दरिया में डूबा हुआ हूँ मैं
,
इससे ज्यादा बदकिस्मती और क्या होगी
आया था तूफ़ान सिर्फ बचा हुआ हूँ मैं
,
खुद को भूल गया मगर उसे ना भूल सका
उसको भुलाने में कब से लगा हुआ हूँ मैं
,
आएगी जब मौत तो आज़ाद हो जायेगा ‘प्रवेश’
इसी कोशिश में कब से ज़हर पीने लगा हुआ हूँ मैं
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