गहरे देखने पर पता चलता है कि मनुष्य परतंत्रता में ही पैदा होता है। जो स्वतंत्र है, वह तो फिर पैदा होता ही नहीं; उसका तो फिर आवागमन नहीं होता। जो बंधा है, वही संसार में आता है। बंधन ही संसार में लाता है।
इसलिए बच्चे भी परतंत्रता में ही पैदा होते हैं; यद्यपि बच्चे बेहोश हैं और उन्हें अपनी परतंत्रता का पता लगते - लगते समय बीत जाएगा।
और बहुत थोड़े - से लोग ही जान पाते हैं कि वे परतंत्र हैं। अधिक लोग तो ऐसे ही जी लेते हैं जैसे वे स्वतंत्र थे। परतंत्र ही मरते हैं, परतंत्र ही पैदा हुए थे: और परतंत्रता का चाक चलता ही रहता है। परतंत्रता राजनैतिक हो तो मोड़ देना बहुत आसान है।
बाहर के जगत में तो रोज क्रांति की जरूरत रहेगी; और क्रांति कभी होगी नहीं: असली परतंत्रता भीतरी है; न राजनीतिक है, न आर्थिक है, न सामाजिक है। असली परतंत्रता आध्यात्मिक है।
तुम स्वतंत्र होने को तैयार ही नहीं हो, स्वतंत्र होने की क्षमता और साहस ही तुममें नहीं है।
और यह पता ही न चले कि हम परतंत्र हैं, तो स्वतंत्रता का उपाय कैसा? फिर तुम परतंत्र लोगों की भीड़ में ही जीते हो। वहां कौन तुमसे कहेगा? वे सभी कारागृह के कैदी हैं। उनमें से किसी ने भी स्वतंत्रता को चखा नहीं।
स्वतंत्र होने के लिए पहले तो प्रशिक्षण चाहिये - पिंजरे के भीतर ही, पहले तो कोई सिखानेवाला चाहिए, जो पंखों का बल लौटा दे, जो भीतर की आत्मा को आश्वस्त कर दे; इसके पहले कि तुम उड़ो खुले आकाश में, कोई चाहिए जो तुम्हें खुले आकाश में उड़ने की योग्यता दे दे। गुरु का वही अर्थ और प्रयोजन है।
गुरु का अर्थ है: कारागृह में तुम्हें कोई मिल जाए, जिसने स्वतंत्रता का स्वाद चखा है। कारागृह के बाहर तो बहुत लोग हैं, जिन्हें स्वतंत्रता का स्वाद है; लेकिन वे कारागृह के बाहर हैं, उनसे तुम्हारा संबंध न हो सकेगा।
"ओशो"
इसलिए बच्चे भी परतंत्रता में ही पैदा होते हैं; यद्यपि बच्चे बेहोश हैं और उन्हें अपनी परतंत्रता का पता लगते - लगते समय बीत जाएगा।
और बहुत थोड़े - से लोग ही जान पाते हैं कि वे परतंत्र हैं। अधिक लोग तो ऐसे ही जी लेते हैं जैसे वे स्वतंत्र थे। परतंत्र ही मरते हैं, परतंत्र ही पैदा हुए थे: और परतंत्रता का चाक चलता ही रहता है। परतंत्रता राजनैतिक हो तो मोड़ देना बहुत आसान है।
बाहर के जगत में तो रोज क्रांति की जरूरत रहेगी; और क्रांति कभी होगी नहीं: असली परतंत्रता भीतरी है; न राजनीतिक है, न आर्थिक है, न सामाजिक है। असली परतंत्रता आध्यात्मिक है।
तुम स्वतंत्र होने को तैयार ही नहीं हो, स्वतंत्र होने की क्षमता और साहस ही तुममें नहीं है।
और यह पता ही न चले कि हम परतंत्र हैं, तो स्वतंत्रता का उपाय कैसा? फिर तुम परतंत्र लोगों की भीड़ में ही जीते हो। वहां कौन तुमसे कहेगा? वे सभी कारागृह के कैदी हैं। उनमें से किसी ने भी स्वतंत्रता को चखा नहीं।
स्वतंत्र होने के लिए पहले तो प्रशिक्षण चाहिये - पिंजरे के भीतर ही, पहले तो कोई सिखानेवाला चाहिए, जो पंखों का बल लौटा दे, जो भीतर की आत्मा को आश्वस्त कर दे; इसके पहले कि तुम उड़ो खुले आकाश में, कोई चाहिए जो तुम्हें खुले आकाश में उड़ने की योग्यता दे दे। गुरु का वही अर्थ और प्रयोजन है।
गुरु का अर्थ है: कारागृह में तुम्हें कोई मिल जाए, जिसने स्वतंत्रता का स्वाद चखा है। कारागृह के बाहर तो बहुत लोग हैं, जिन्हें स्वतंत्रता का स्वाद है; लेकिन वे कारागृह के बाहर हैं, उनसे तुम्हारा संबंध न हो सकेगा।
"ओशो"
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