तन्हा वीरानों में
दुनिया कितनी हसीन है
ना डर, ना खौफ, ना कोई जुर्म संगीन है,
भीड़ में डरती है हर सांस मेरी
ना अपना आसमां है ना अपनी जमीन है,
ख़ुदा ने जितने इंसान बनाये शैतान हो गए
ये धरती हमारी अब गुनाहों की आस्तीन ह,
बनावटी मुस्कान लिए फिरता है हर चेहरा
मगर अन्दर से हर दिशा गमगीन है,
सोचता हूँ चीर दूं मैं सीना धरती का
देखना है भीतर से ये और कितनी हसीन है |
ना डर, ना खौफ, ना कोई जुर्म संगीन है,
भीड़ में डरती है हर सांस मेरी
ना अपना आसमां है ना अपनी जमीन है,
ख़ुदा ने जितने इंसान बनाये शैतान हो गए
ये धरती हमारी अब गुनाहों की आस्तीन ह,
बनावटी मुस्कान लिए फिरता है हर चेहरा
मगर अन्दर से हर दिशा गमगीन है,
सोचता हूँ चीर दूं मैं सीना धरती का
देखना है भीतर से ये और कितनी हसीन है |
No comments:
Post a Comment