Monday, 8 February 2016

बनावटी मुस्कान लिए फिरता है



तन्हा वीरानों में दुनिया कितनी हसीन है
ना डर, ना खौफ, ना कोई जुर्म संगीन है
,
भीड़ में डरती है हर सांस मेरी
ना अपना आसमां है ना अपनी जमीन है,
ख़ुदा ने जितने इंसान बनाये शैतान हो गए
ये धरती हमारी अब गुनाहों की आस्तीन ह
,
बनावटी मुस्कान लिए फिरता है हर चेहरा
मगर अन्दर से हर दिशा गमगीन है
,
सोचता हूँ चीर दूं मैं सीना धरती का
देखना है भीतर से ये और कितनी हसीन है
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