Tuesday, 29 December 2015

तेरे भी काम आएगी किसी की दुआ

दर्द कब किसका सगा हुआ
इसने भी उड़ जाना है एक दिन बनकर धुंआ,
भूल जा जो हुआ सो हुआ
कभी तो तेरे भी काम आएगी किसी की दुआ |
कब तक असर करेगी ज़माने की बद्दुआ
हर कोई यहाँ से गया जो था यहाँ आया
हमेशा आग बुझने पर निकालता है धुंआ
कभी तो तेरे भी काम आएगी किसी की दुआ |
क्या हुआ गर तेरा कोई नहीं हुआ
जीतता वही है जो अकेला है जीया,
ख़ुशी पायी उसने जिसने गम को है पीया
कभी तो तेरे भी काम आएगी किसी की दुआ |
गीता ने कहा जो हुआ अच्छा हुआ,
फिर तू क्यूँ है सोच में डूबा हुआ ,
जीवन वरदान है भगवान का दिया हुआ
कभी तो तेरे भी काम आएगी किसी की दुआ |
कदम ना हटा पीछे जो आगे बढ़ा दिया,
ना डर तू दुनिया से ना कदम को तू डगमगा
तू ही है रौशनी तू ही है दीया
कभी तो तेरे भी काम आएगी किसी की दुआ |


Sunday, 27 December 2015

करता रहा वफ़ा मैं तमाम उम्र

करता रहा वफ़ा मैं तमाम उम्र,
मोहब्बत का उसपर हुआ ना असर,
इश्क़ को उसने खेल समझ रखा था,
मेरे दर्द का मैंने किसी से ना किया जिक्र
आधी ज़िन्दगी बीती उसे अपना बनाने में,
अब उसे भुलाने में गुजरेगी बाकी उम्र,
मौत के बाद मुझे मिल जाएगी जन्नत ‘प्रवेश’,
बस खुदवा देना तुम बेवफ़ा से मेरी कद्र

क्या कर गया मैं इश्क़ की धुन में

रंगे है हाथ मेरे, मेरे ही खून से,
कर गया क़त्ल अपना ही जूनून में
बेवफाई के पत्थरों ने जख्मी किया,
रहना चाहता था वफ़ा के संग सुकून से,
जान से भी ज्यादा प्यार है जिनसे मुझे,
वो अब रहते हैं प्यासे मेरे खून के
कातिलों की बस्ती में आ गया खुद ही,
क्या कर गया मैं इश्क़ की धुन में
अपने खून से माँग भरने की ख्वाहिश थी जिनकी,
देख लेना एक दिन नहायेंगे वो मेरे खून में

Friday, 25 December 2015

कलयुग में राम रहीम सब चुप हैं

मैं सुबह उठा आज देर से
खुद को कुछ बिखरा पाया,
नया था सबकुछ या वही था,
कुछ न कुछ तो जरुर हुआ था,
मैं बेकार ही उदास ना था
कुछ भी मेरे पास ना था
|
हैरत हुई मुझे खुदपर
दिमाग भी खाली
जेब भी खाली
दिल में बस थोडा कोलाहल था
अजीब सा शौर था
आज मैं, मैं ना था
शायद कुछ और था
सबकुछ मुझे लगा था
जैसे पहली बार है देखा,
या अबतक देखकर भी
कर रहा था अनदेखा
दुनिया में कितना दुःख है
उसमे भी गरीब को सूख है,
ये तो अमीर की समस्या है
जेब भरी है दिल खाली है,
हर कोई पैसे का रखवाली है
ज्यादा की सबको ही चाहत है
जितना है उसमे कहाँ संतुष्ट है
सब कहते हैं नेता भ्रष्ट है
इसलिए जनता को कष्ट है
आज देखा मैंने एक और सच है

कुदरत के कानून में भी
यहाँ होता अन्याय है,
मेहनत को हराकर किस्मत
यहाँ अपने पैर जमाये है
अच्छी किस्मत वाले को
मेहनत की ज़रूरत नहीं,
मेहनत करने वाला यहाँ
किस्मत को तरसता है
सूखे खेत अम्बर और
मुँह उठाये खड़े हैं,
पर पानी तो हमेशा
मिट्टी के मकानों पर बरसता है
कोई मेहनत करता मर जाता
पर हासिल कुछ ना होता,
आंधी, तूफ़ान में गरीब ही मरता
महलों में कुछ ना होता
लायक होते हुए भी कोई
नालायक ही समझा जाता है
,
अमीर का चोर बेटा भी
इज्जत से नवाजा जाता है
|
जब उपरवाले ने ही भेदभाव किया है
तो नेताओं का क्या दोष है,
बेचारी जनता बेवजह लड़ती
मुझे तो बस इतना सा अफ़सोस है
बहु बेटियाँ सबकी एक बराबर
ये यहाँ कोई नहीं मानता
कौनसा नशा है कि इंसान यहाँ
अपनों को भी नहीं पहचानता
|
ऊँच-नीच और धर्म-जाति
के नाम पर अपना देश बट गया,
हिन्दू को खून चाहिए था

देखो मुस्लिम पीछे हट गया |
एक जैसा है सबका शरीर
खून का रंग है सबका लाल,
शरीर ही है शरीर का दुश्मन
देखो इंसानियत का कमाल
पापियों को मिटने धरती पर
हमेशा भगवान् आयें हैं
कलयुग में राम रहीम सब चुप हैं
ये उपरवाले का अन्याय है


Thursday, 24 December 2015

वो बने मेरी ’वधु’ मैं उसका ‘वर’

हजारों मील तुम मुझसे दूर चले गए,
मेरे ही घर में मुझे तन्हा कर गए
तुम्हारी कितनी होती है मुझे फ़िक्र
जैसे मेरे शरीर से निकल रहा हो जिगर
कैसे मैं एक-एक पल काटता हूँ
ख़ुदा से तुम्हारा साथ ज़िन्दगी भर मांगता हूँ
तुम्हारे आने तक क्या होगा मेरा मैं नहीं जानता,
मैं रहूँ न रहूँ तू तहे सलामत यही मांगूं मन्नता
रास्ते पर इंतजार में रहे नजर सुबह-शाम, दोपहरी
जैसे बाग़ में पहरा दे रहा हो कोई पहरी
मुझे ना सोचना तुम अपना रखना ख्याल
तुम रहोगे खुश तो मैं भी रहूँगा खुशहाल
हर घड़ी मैं तुम्हारे लिए रहता हूँ बैचेन
रो-रो कर तुम्हारी याद में थकते नहीं नैन
ऐ ख़ुदा मुझपर कोई ऐसा करिश्मा कर,
वो बने मेरी ’वधु’ मैं उसका ‘वर’
अब और इंतजार ना दिल चाहता है,
बस रूह से उसका दुलार चाहता है
इंतजार करके थक चुका है शरीर,
ऐ ख़ुदा करदे मुझे आज़ाद खोल दे ज़ंजीर
सारी बंदिशे तोड़कर उनसे मिलना है,
दुनिया का क्या इसका तो काम जलना है
ऐ ख़ुदा मर जाऊंगा गर अब करना पड़ा इंतजार
उसे कर मेरा और मुझे उसका मेरा रोम-रोम रहा पुकार


Wednesday, 23 December 2015

हुआ इश्क़ मेरा नाकाम तो क्या हुआ

हुआ इश्क़ मेरा नाकाम तो क्या हुआ,
हुआ किस्सा मेरा तमाम तो क्या हुआ
प्यार की गलियां तो आज भी पाक हैं,
हुआ मैं ही बदनाम तो क्या हुआ
मयखाने में तो मैं भी गया था,
नसीब में मगर नहीं था जाम, तो क्या हुआ
रोज निकलती है मजनुओं की मैय्यत,
हुआ मैं ही सरे-आम तो क्या हुआ
दुश्मन तो उनके बहूत हैं ‘प्रवेश’,
बस लिखा मेरा है नाम तो क्या हुआ

मेरे सारे ही किस्से तमाम हो गए

इश्क़ के बाज़ार में हम नीलाम हो गए,
वफ़ा करके भी हम यहाँ बदनाम हो गए
बेवफ़ा को मिल गया आशिक़ नया,
मेरे सारे ही किस्से तमाम हो गए
उसने रचाली है मेहंदी गैर के नाम की,
इधर मेरे सरपे बेवफाई के इल्जाम हो गए
बेहोश रहना और होश में ना आना,
मैकदे में जाना ही बस मेरे काम हो गए
किसी से बात नहीं करता चुप रहता है ’प्रवेश’,
जिंदा होकर भी हम मुर्दा इंसान हो गए

Tuesday, 22 December 2015

एक ओर है मदिरालय एक ओर पुस्तकालय

किताब और दारु में हो गई लड़ाई
दोनों कहती हैं, नौजवान सब है मेरे भाई,
किताब ने दारु को ललकारा
बीच बाज़ार लोगों को पुकारा,
चारों और लोग हो गए इकठ्ठा
किताब और दारु पर लगने लग गया सट्टा
किताब बोली...................
मैं लोगों को ज्ञान हूँ देती,
संसार में लोगों को सम्मान दिलाती,
मेरी शरण में जो भी आता,
ज़िन्दगी भर मैं उसका साथ निभाती
दारु बोली.....................
तुझसे तंग आकर सब मेरे पास ही आते हैं
मुझे गले लगाकर अपने सारे गम भूलाते हैं
बेशक मेरा साथ हो कुछ पल का लेकिन
मेरा साथ पाकर सब झूमते और गाते हैं
किताब बोली...................
तेरा साथ पाकर सब शर्म-हया खो देते हैं
तेरा साथ छुटता है तो खुद पर ही रो देते हैं
तेरे साथ सब मेरे शब्द ही गाते हैं, ये सोच
कि तेरे साथ होकर भी कहाँ मुझे छोड़ पाते हैं
सदियों से मैं सबका साथ निभाती आई हूँ,
जो भी भटका है उसको राह दिखाती आई हूँ
तूने तो लोगों को उजाड़ा और रुलाया है
मैंने तो रोते हुए को हँसना सिखाया है

दारु और किताब में जंग अभी भी जारी है
किसको है जिताना ये जिम्मेदारी हमारी है
जो चुनेगा सही रास्ता मंजिल को पा जायेगा
वरना तो संसार में ही चक्कर खायेगा
दारु पीने वाला तो खोता है और रोता है
वक़्त से पहले ज़िन्दगी से हाथ धोता है
किताबों में छुपे ज्ञान को जिसने ना पाया,
वो सच्चे अर्थों में कहाँ इंसान होता है,
कोई बढ़ा न पाया एक कदम भी
कोई पहुँच गया हिमालय,
आपको जाना है कहाँ आपको तय करना है,
एक ओर है मदिरालय एक ओर पुस्तकालय



Monday, 21 December 2015

बैचेन हूँ तेरे प्यार में मैं जिस तरह

बैचेन हूँ तेरे प्यार में मैं जिस तरह,
तडपे तू भी मेरे प्यार में उस तरह
दिन तो गुजर गया तेरी यादों में,
गमें-शब गुजारूँगा अब किस तरह
शराब न पीने के वादे पे कायम हूँ अब भी,
हिज्र के गम अब मिटाऊंगा किस तरह
छोड़कर गयी मुझे मझधार में अकेला,
तन्हा ये ज़िन्दगी अब बिताऊंगा किस तरह
साथ जीने मरने का वादा कर गया ‘प्रवेश’,
बिन उसके मौत गले लगाऊंगा किस तरह


शमा ना जलाओ मेरे नशेमन में

मुझे मेरे दर्द के साथ जी लेने दो,
मुझे जाम पे जाम पी लेने दो
शमा ना जलाओ मेरे नशेमन में,
मुझे घनघोर अंधेरों में रह लेने दो
चुप रहकर मैं जी ना सकूँगा,
मुझे जी भरकर तुम रो लेने दो
उसने दिया धोखा जो जान से प्यारा था,
उसको मत कोसो मुझको तन्हा रहने दो
झूठी दिलासा से ना बहलाओ मुझे,
मेरे टूटे दिल को टूटा ही रहने दो
मेरा सामना हो गया है सच से,
अब इस सच को सीने में उतर जाने दो


Sunday, 20 December 2015

जहाँ मैं सदा भगवान् का दास रहूँ

उदास शाम में बैठा हूँ मैं हार थक के,
सोना चाहता हूँ मैं किसी गोद में सर रख के,
जहाँ ना रौशनी हो ना अंधकार हो,
ना किसी मंजिलों का इंतजार हो,
ना ख़ामोशी हो ना शौर का संसार हो,
ना दुश्मनी हो किसी से ना किसी से प्यार हो,
ना अकेलापन हो ना कोई भीड़ हो,
ना जगता रहूँ ना कोई नींद हो,
ऐसी कोई अवस्था हो,
जिसमे इन सबसे अलग कोई व्यवस्था हो,
ना संसार का मैं प्राणी रहूँ,
ना दुसरे गृह में वास करूँ,
बस ऐसा कोई आवास हो
जहाँ मैं सदा भगवान् का दास रहूँ


हनुमान की तरह आग बुझाओ

एक बार पड़ गया मुझे एक जयन्ती में जाना,
वहां पर थे जंतुओं के प्रकार नाना-नाना
बुजुर्गों से लेकर कॉलेज के विधार्थी युवा
टेंट कुर्सियों का था बंदोबस्त पंखे दे रहे थे हवा,
हर बुजुर्ग के हाथ में थी गेंदे के फूलों की माला
जिसे था उन्हें किसी की प्रतिमा पर चढ़ाना
अजीब होती है ये जयंती की दास्तान
लोग माला लिए मौन खड़े होते हैं
जो कल मरा है उसे भूलकर
सालों पहले मरे हुए को रोते हैं
कहते है समय नहीं किसी के पास
और ये वाहियात तरीके से समय खोते हैं
फिर एक नोजवान आया मंच पर
बोला हम बुजुर्ग और तुम युवा हो,
हमारे पास तो बस कानून है,
तुम्हारे पास जोश और जूनून है
तुम्ही देश के आने वाले नेता हो
कहने वाले ये क्यूँ भूल जाते हैं
वे भी कभी युवा थे
बुजुर्ग तो बाद में होते हैं
भीड़ बुलाने का उनका अंदाज़ था निराला
क्योंकि अखबार में था उनको अपना फोटो छपवाना
और कहते हैं हमने जयंती मनाई
उनकी याद में हमारी आँख भर आई
इस तरह से वो ढोंग रचाते
घर जाते ही बीवी से लड़ते और बाहर,
शांति से रहने का आश्वासन दे जाते |

अगर आज होती पूंछ आदमी के पास
और मेरे पास कुछ जादू ख़ास
मैं ऐसे आदमियों की पूंछ में आग लगाता
और कहता, जयंती तुम बाद में बनाओ
अगर है तुम्हारे पास हुनर तो
हनुमान की तरह आग बुझाओ |

Friday, 18 December 2015

सूर्ख जोड़े में वो सुहागन बनी है

मेरे महबूब की डोली उठने लगी है,
मोहब्बत की दुनिया लुटने लगी है,
साथ ली थी जो कभी हमने साँसे,
एक एक करके वो सब घुटने लगी हैं |
देखी है मैंने मुस्कान उसके रुख पर,
मेरी अब धड़कन रुकने लगी है,
बसायेगी घर वो जाकर किसी गैर का,
मेरी तो दुनिया ही उजड़ने लगी है |
ले चलो अब मुझको दूर यहाँ से,
कानों में शहनाई चुभने लगी है
मयखाना कहाँ है कोई तो बता दो,
दिल में मेरे आग जलने लगी है |
कर लो तैयारी मेरे मरने की लोगो,
जिस्म से मेरे जान निकलने लगी है,
सूर्ख जोड़े में वो सुहागन बनी है,
इधर मेरे अरमानों की अर्थी जलने लगी है |
उसको तुम खुशियाँ लेने दो यारों,
‘प्रवेश’ की हस्ती मिटने लगी है |

गुनाह हो गया है अब मोहब्बत करना

दर्द ने मेरे मुझे कैसा सिला दिया,
किया बर्बाद मुझे ख़ाक में मिला दिया
खुशियों के ख्वाब बुनता था मैं,
मुझे गम के सागर में डूबो दिया
वफ़ा को ही अंजाम समझा था मैंने,
क्या खता हुई जो मुझको दगा दिया
आरजू क्या क्या दिल में सजा रखी थी,
मुझे मेरी गरीबी का एहसास दिला दिया
‘प्रवेश’ गुनाह हो गया है अब मोहब्बत करना,
ये हक़ भी सिर्फ अमीरों को दिया गया

Thursday, 17 December 2015

तो ऐसा दिन भी आएगा

मैं ये सोच-सोचकर हूँ परेशान,
आखिर कब जाऊँगा मैं शमशान,
क्योंकि दुनिया से मैं छिक गया
यहाँ सबका चरित्र बिक रहा
कलयुग ने की है ऐसी ठिठोली
किसी का सिरदर्द,
किसी के लिए सिरदर्द की गोली
सब सब पैसे के पीछे भाग रहे
चाय पी-पीकर सुबह जाग रहे,
पहले आदमी उठते ही पानी पीता था,
इसीलिए तो सो साल तक जीता था
पहले लड़की को देवी कहते थे,
आज उसका देवत्व भी दाव पर है,
पहले धन-दौलत ही बिकता था
आज सबका चरित्र भी दाव पर है
पैसे से ही दिल मिलता है
कोई मुल्य नहीं चरित्र का,
पैसे के लिए तन बिकता है
कुछ भी नहीं है आज दरिद्र का
आज सब पैसे को पूजते हैं,
पैसे को ही मानते भगवान्,
इसलिए तो दुखों से झुझते हैं
तभी तो पैसे वालें है बदनाम
अगर लोग यूँ ही पैसे के पीछे पड़े रहे
अपनी-अपनी जिद्दों पर अड़े रहे
तो ऐसा दिन भी आएगा

आज भाई भाई को मरता है,
फिर बेटा माँ-बाप पर तलवार चलाएगा
आज आदमी पशु को खाता है,
फिर पशु आदमी को खायेगा
जब ऐसा दिन आएगा
आदमी अपनी करनी पर पछतायेगा
पर कर कुछ नहीं पायेगा
सिर्फ तड़प तड़प कर मर जायेगा
अभी भी वक़्त है जाग जाओ,
पैसे के लालच का त्याग करो,
सबको प्यार से गले लगाओ
मनुष्य से ही प्यार करो
हिन्दू धर्म की लाज बचाओ


तू ही रहेगी मेरी “तृष्णा”

कहाँ गई तुम मुझे एक बार दर्शन देकर
बना दिया मुझे प्रेम पुजारी
आ जाओ मेरे सामने अपनी मुस्कान लेकर
दूर करदो अब मेरी बीमारी
तेरे प्यार में मैं पागल सा हो गया हूँ,
तुझे ढूंढता-ढूंढता रो रहा हूँ
कहाँ खो गई ऐ मेरे दिल की तमन्ना
बन गई हो तुम मेरी “तृष्णा”
तुझे पेड़ पत्तों में ढूंढता हूँ
नदियों, झरनों में खोजता हूँ,
ख्वाबों, ख्यालों में तुझे ही सोचता हूँ
ना मिलने पर दीवारों को नोचता हूँ
थोड़ी सी तो मेरी फ़िक्र कर
मैं रो-रो कर दिन काट रहा,
किसी से तो तू मेरा जिक्र कर
मैं बैठ बैठ कर रात जाग रहा
सच्चे प्यार की तू पहचान कर
मैं दिल से तुझे पुकार रहा
आकर मेरा तू हाथ थाम,
मैं पागलखाने की और भाग रहा
मेरा दिल तो तेरे पास है
मैं तो बिन दिल के जी रहा हूँ
बस तेर मिलने की ही आस है
वरना मैं तो पल-पल मर रहा हूँ
मेरा प्यार है बिलकुल पवित्र
तुझे भगवान् की तरह ढूंढा करता हूँ,
तुझसे मिलने के लिए हूँ मैं आतुर
रोज तेरी ही पूजा करता हूँ
तू जो ना मिली मुझे कल तक

फिर कल मुझे है मरना,
पर अगले सात जन्मों तक
तू ही रहेगी मेरी “तृष्णा” |

Wednesday, 16 December 2015

रीना, मीना या कटरीना

तुझे देखकर मेरा दिल रुक गया
प्यार में तेरे मेरा सर झुक गया
तेरी चाल में नहीं कोई खराबी
देखकर मैं तो हुआ शराबी
कमर तेरी मस्त लचके
देखकर मेरा दिल मचले
सीना तेरा मुझे करे दीवाना
मैं गाऊं तेरे प्यार में गाना
तेरी जुल्फों में मेरा दिल अटका
ये खाए रुक-रुक कर झटका
स्माइल पर तेरी मेरा दिल फिसला
नीचे से ऊपर तक मेरा शरीर मचला
तेरे “
whole  फिगर ने किया मुश्किल जीना
बता तेरा नाम है क्या
रीना, मीना या कटरीना


मुझे बसंती की तरह नचाएंगे

चमत्कार किए धरती पर
ख़ुदा ने देखो बेशुमार,
कोई ज़िन्दगी भर पैदल चलता है
कोई बचपन से चलाता है कार
कुछ वक़्त के लिए ही सही
प्रभु मेरी भी सुन लो एक पुकार,
लड़की और लड़कों की दुनिया हो अलग
बस इतना सा कर दो चमत्कार |
लड़कों को कमी महसूस हो प्यार की
पर लड़कियां वहाँ रहे बेफिक्र,
मैंने मांगी थी ये दुआ आपसे
इस बात का ना करना तुम जिक्र,
वरना सब लड़के इकठ्ठे होकर
मुझे बसंती की तरह नचाएंगे,
गर मना किया मैंने तो
मेरी हड्डियों का सब सुरमा बनायेंगे |
मुझे नफरत नहीं है प्रभु किसी से
मैं लड़कियों की इज्जत करवाना चाहता हूँ,
पर रोज बढ़ती दुष्कर्मों की संख्या से
मेरा दिल डरता है और मैं घबराता रहता हूँ
मनुष्य के कानून तो सब फ़ैल हो गए
तू ही कुदरत का कोई कानून बना दे,
जो भी तोड़े तेरे कानून को फिर
तुम्हे जो लगे जायज उसे वो सज़ा दे


Tuesday, 15 December 2015

बेवफ़ा को कैसे मैं भूला पाउँगा,

बेवफ़ा को कैसे मैं भूला पाउँगा,
दर्द बढ़ेगा तो अब कहाँ मैं जाऊंगा
जला दिया अपना घर अपने ही हाथों से,
दिन ढलते ही मयखाने को अब जाऊंगा
आश्ना थे जो कभी अजनबी से रहते हैं,
कैसे मैं अब यहाँ नए रिश्ते बनाऊंगा
ना आना तू भी अब मेरी अयादत को,
पिऊंगा शराब और अब ग़ज़ल मैं गाऊंगा
अश्कों का समंदर सुखा लेने दो मुझको,
बाद उसके जाम को मैं हाथ ना लगाऊंगा
मेरी लाश को बेवफ़ा से दूर ही रखना यारों,
जन्नत में, मैं मयखाना कहाँ से लाऊंगा
‘प्रवेश’ तो चला दूर इस दुनिया से,
अब तो ख़ुदा को अपनी मोहब्बत के किस्से सुनाऊंगा


मैय्यत में उसकी कोई भी ना जाये

सच्चा प्यार उसको कभी नसीब ना हो,
मेरे जैसा दुनिया में कोई गरीब ना हो,
तडपती रहे वो उम्रभर अकेली,
कभी भी उसके कोई करीब ना हो
ठोकर लगे उसे हर एक कदम पर,
मंजिल के जब भी करीब वो हो
याद आए उसको हरपल मेरी,
मैं मिल जाऊं ऐसा उसका नसीब ना हो
रह सके वो अपनी बस्ती में सलामत,
ऐसा भी उसका कोई रकीब ना हो
मैय्यत में उसकी कोई भी ना जाये,
ख़ुदा करे उसको कान्धा कोई नसीब न हो


मयखाने में चलो आज महफ़िल सजाओ

मयखाने में चलो आज महफ़िल सजाओ,
दिल में है दर्द बहूत, कुछ तो घटाओ
जाम पे जाम मुझे पीने दे साकी,
ना बहूत सुनी मैंने अब बहाना ना बनाओ
दौलत, मोहब्बत कुछ भी ना मिला मुझे,
ख़ुदा को मुझे तुम याद ना दिलाओ
घुल जाने दो तुम शराब में मुझको,
पीने की आदत अब मेरी न छुडाओ
मंदिर-मस्जिद मैंने इबादत भी की है,
मयखाने में अब तुम ग़ज़ल कोई सुनाओ
शराब में वफ़ा ही वफ़ा है साकी,
बेवफ़ा का नाम अब याद ना दिलाओ
एक कोना मयखाने में बख्श दो मुझको,
जाओ रकीबों शौक से मेरे घर को जलाओ
मेरे आशियाने में गम-ऐ-तन्हाई है,
मुझे मेरे घर का पता ना बताओ
मर जाने दो मुझे तडपते तडपते,
पत्थर दिल को मगर तुम न बुलाओ
कुछ दिनों का बस मेहमान है “प्रवेश”,
जी भरकर तब तक यारों शराब पिलाओ


Monday, 14 December 2015

पर महंगाई है चीज क्या ?

एक दिन मुझे दोस्त मिला मेरा
उसने कहा सुना क्या हाल है तेरा,
मैंने कहा मज़बूरी से लड़ रहा हूँ
इसलिए दस घंटे की नौकरी कर रहा हूँ
उसने कहा तुम अजीब हो मियाँ
नौकरी तो हम भी करते हैं,
हम तो करते हैं मस्ती वहां
आप जैसे उसे मज़बूरी कहते हैं
उसने कहा मज़बूरी और मस्ती में
मियाँ कुछ तो तुम फर्क करो,
हमारे लिए तो दोनों एकसे हैं
आप ही हमारा भ्रम दूर करो |
मैंने कहा मुफ्त की सलाह बाज़ार में
थोक के भाव बिक जाती है,
जब लगती है वक़्त की चोट
आँखें अपने आप खुल जाती हैं
उसने कहा वक़्त का इंतजार करूँगा
लेकिन अभी मैं चलता हूँ,
तब तक आप वफ़ा करो मज़बूरी से
मैं मस्ती से रिश्तेदारी करता हूँ |
कुछ दिन बाद वो दोस्त मिला रस्ते में,
चलते-चलते मैंने हाल पूछा हँसते में
उसने कहा, वहां दिल लगाना दुश्वार हो गया,
इसलिए नौकरी से हमारा तकरार हो गया,
सोचा कुछ दिन घर पर बिताऊंगा,
पर घरवालों को ये नागवार हो गया,
अब सोचता हूँ कैसी भी नौकरी मिल जाये
और मैं नौकरी पाने को बेकरार हो गया |
मैंने कहा अभी सही वक़्त आया है
पर मज़बूरी को बेकरारी का नाम ना दो,
तुमने वक़्त का सिर्फ थप्पड़ खाया है

सब ठीक होगा, हिम्मत से काम लो,
मैंने कहा- रजाई में बैठकर दोस्त
दिसम्बर की सर्दी का अंदाज़ा लगाना ठीक नहीं,
किसी गरीब की मज़बूरी देखकर
अपनी मस्ती का जाम छलकाना ठीक नहीं |
टैक्स की चोरी करके नेता जी
महंगाई कम करने का भाषण तो दे जाता है,
पर महंगाई है चीज क्या? ये तो वो गरीब
जिसने पी है फीकी चाय, वो ही जानता है
उसने मेरा हाथ पकड़कर नम आँखों से कहा-
मियाँ आज ज़माने का सच समझ में आया है,
हर इंसान है मजबूर यहाँ पर 

मस्त तो वही है जिसके पास माया है |

Sunday, 13 December 2015

गंवार था जो शिक्षक भर्ती हो गया

शिक्षा का भी स्तर गिर गया,
शिक्षकों का भी मान घट गया
बेकसुर हैं
, युवाओं को दोष ना दो,
स्कूलों में भी भ्रष्टाचार बढ़ गया
नैतिक मूल्य भी भूल गए सब,
संस्कारों का पाठ कहीं खो गया
हर्फ़ों से अपरिचितों को खुश देखा तो,
मैं अपनी डिग्रियां देखकर रो गया
रिश्वतखोरी ने डामाडोल किया सब,
गंवार था जो शिक्षक भर्ती हो गया
भविष्य देश का खतरे में है,
मार्गदर्शक था जो अब खुदगर्जी हो गया
बेफिक्र रहने की कोशिश करेगा ‘प्रवेश’,
हालात ठीक करना अब सरदर्दी हो गया

खिलने को तो कब्र पर भी फूल खिलते हैं

हमारी आस्तीन में अब सांप पलते हैं,
लोग दिखावे का हमसे अब रिश्ता रखते हैं
आ जाओ सामने एक बार जी भरके देखलूं,
आखिरी बस अब यही ख्वाहिश रखते हैं
तुमने पाल ली है हमसे दुश्मनी दिल में,
हम तो तेरी ही चाहत की आरजू रखते हैं
जब जी चाहे आ जाना मेरी अयादत को,
तेरी खातिर हम बचाकर आखिरी सांस रखते हैं
बाकी उम्र हम गुजारेंगे अपनी मयखाने में,
वही एक छोटा सा आशियाना बनाकर रखते हैं
जानते हैं के इंतजार की हदें भी टूट जाएँगी,
तेरे दीदार की तमन्ना फिर भी दिल में रखते हैं
आ जाना जब ख़ाक में मिल जाएगा “प्रवेश”,
खिलने को तो कब्र पर भी फूल खिलते हैं


Friday, 11 December 2015

शुरू हुआ नेता का भाषण

शुरू हुआ नेता का भाषण
भीड़ में था बच्चों-बूढों का मिश्रण,
नेता मंच पर खड़े हुए
दोनों हाथ में माइक लिए
नेता ने शुरू किया कहना
बोले भाइयों भाइयों भाइयों......
दुसरे नेता ने टांग अड़ाई
बोले अब आगे कह दो बहना
पहला नेता बोला
मैं युवा और कुंवारा हूँ
बहन कहने से सबका दिल टूटेगा
फिर मैं वोट कैसे लूटूँगा
दूसरा नेता बीच में बोला
ये है कलयुग का मेला
यही रस्म हर नेता को निभाना है,
बहन बोलकर ही वोट मिलती है
क्योंकि बड़ा बेहनचोद ज़माना है


अगर हो तुमको स्वस्थ जीना

हुक्के की गुड़-गुड़ सुन
जी मेरा ललचाये,
इसको पीने की खातिर
दिल आतुर हो जाये
गुड़-गुड़ सुनते ही दिल बोले
चल-चल चल हुक्का भरले
घर में हुक्का मेरे पास नहीं है
चल दोस्त के पास यही सही है
दोस्त को जाकर ये समझाऊ
चल मिलके घूट लगाएँ,
दोस्त बोला पापा मेरे घर पर हैं
हुक्का भंरू तो डंडा मेरे सर पर है
निराश होकर घर पर आऊँ
अपने दिल को ये समझाऊँ
हुक्का पीना बुरी बला है,
ये बीमारी कैंसर से भरा है
दिल मेरा ये बात समझ जाए
हुक्के को न कहकर मुझको बचाए
दोस्तों तुम भी तम्बाकू मत पीना
अगर हो तुमको स्वस्थ जीना


दोनों के दिल धड़क रहे थे

एक दूसरे को लगे खींचने
आँखों ही आँखों में,
प्रेम कहानी शुरू हुई
बातों ही बातों में,
छुआ एक-दुसरे को दोनों ने
हाथों ही हाथों में
रस था होंठों पर
होंठों से लग गए पीने
दोनों के दिल धड़क रहे थे
साथ धड़क रहे थे सीने
दो पहाड़ों के बीच से
युवक नीचे लगा उतरने,
नीचे था एक पवन झरना
युवक उसमे लगा तैरने
युवती का दिल काँप रहा था
युवक को लगी वो रोकने,
वो भी था अपनी अकड में
युवती को लग गया डांटने
वो भी जब ना मानी तो
युवक को गुस्सा लगा आने,
उसने आव देखा ना ताव
लग गया अपनी अकड़ निकालने
गुस्सा जब उसका शांत हुआ
तब वो लग गया मुरझाने,
युवती को आया गुस्सा
अब वो भी लग गई अकड़ने
युवक बेचारा क्या करता
था वो मुरझाया मुरझाया,
युवतियों को तो वो भी ना हरा पाया
जिसने है स्रष्टि को बनाया


Tuesday, 8 December 2015

सच, ईमान, ज़मीर, ये सब भी बीमारी है

ज़िन्दगी का एक एक पल बोझ भारी है,
गरीबी, भूख की लडाई अभी तक जारी है,
खून पसीना बहाकर भी घर खाली है,
सेठों की तिजौरी में गाढ़ी कमाई हमारी है
पड़े लिखो को बेरोजगार देखा तो समझ आया,
भीख मांगना भी इन भीखमंगो की लाचारी है
इमानदारी, विनम्रता से चलते-चलते भूखे मर गए,
पेट निकल गए उनके जो भी अत्याचारी हैं
नेता ने एलान किया हम समृद्धि की राह पर हैं,
पर यहाँ तो गली गली में बेकारी है
अब दर दर ठोकर खाकर सीख गया ‘प्रवेश’,
सच, ईमान, ज़मीर, ये सब भी बीमारी है

दिन में भीड़ में मैंने दिल को बहलाया है

दिन में भीड़ में मैंने दिल को बहलाया है,
रातों में खिल्वत में इसने बहूत मुझे रूलाया है
दिल की गलियाँ करके गई वो बर्बाद,
वो उतना ही याद आया जितना उसे भुलाया है
गिडगिडा-गिडगिडा कर हमने गवां दी कद्र अपनी,
उसने मुड़ कर भी नहीं देखा कितना उसे बुलाया है
मैं बैठा था उदास हवा ले आई उसकी खुशबू,
ये बेदर्द हवा का झोंका किस और से आया है
छोड़ आओ अब “प्रवेश” को मयखानों में,
आवाज़ आ रही है, लगता है साकी ने बुलाया है


Monday, 7 December 2015

चाहे दोस्त बने या दुश्मन बने ज़माना

तूने जब से मुझको छुआ है
कोई भी सपर्श अच्छा नहीं लगता,
झूठा-झूठा सा लगता है
मुझे तेरे सिवा हरेक रिश्ता
तेरे ख्यालों के साथ मैं
हर वक़्त रहना चाहता हूँ,
इसलिए दो मिनट की दूरी मैं
दस मिनट में तय करता हूँ
तेरे मेरे बीच जो आए
मुझे दुश्मन नजर आता है,
मैं कोशिश करता हूँ तुझे भुलाने की
मगर दिल भूले नहीं भूलाता है
ये तेरा मेरा रिश्ता अब
जाने क्या-क्या रंग दिखलायेगा,
मुझको तो ये जानना है कि
कौन इसे अपनाएगा और कौन ठुकराएगा
तू इक अकेली मेरी ताकत है
तू दामन अपना मुझसे छुड़ा ना लेना,
तू साथ रहना हर घड़ी, हर वक़्त
चाहे दोस्त बने या दुश्मन बने ज़माना


Sunday, 6 December 2015

मैं तो बेख़बर सा रहता हूँ अपने हालात से

दर्द बढ़कर दिल का हद से पार हो गया,
सितमगर जीना मेरा अब तो दुश्वार हो गया
रहती है शिकायत मुझे अब खुद से इतनी,
क्यूँ मैंने कभी किसी से प्यार किया
गम-ऐ-आलम में डूबा रहता हूँ इस कदर,
दर्द का एक सिलसिला अब दिल में रह गया
मैं तो बेख़बर सा रहता हूँ अपने हालात से,
लोग कहते हैं ‘प्रवेश’ अब मेयख्वार हो गया

हौसलें हो बुलंद वो कब बर्बाद होते हैं

फकीरों की आँखों में भी ख्वाब होते हैं,
मगर पूरे बड़ी मुद्दतों के बाद होते हैं
होते हैं सितम भी अक्सर मुफलिसों पर,
हौसलें हो बुलंद वो कब बर्बाद होते हैं
कब तक करोगे तुम कोशिश मुझे हराने की,
अकेले दौड़ने वाले बोलो कब पीछे रहते हैं
आया था एक बाज़ तोड़ गया कुछ घोंसले,
मगर चिड़िया के घर तो अब भी आबाद रहते हैं
तुम रहते हो परेशान बस एक ही कारण है,
तुम नाशाद रहते हो हम शाद रहते हैं



Saturday, 5 December 2015

कभी मैं हाँ कहता रहा कभी वो ना कहते रहे

अपनी-अपनी जिदों पर अड़कर
नंगे पैर हम तलवार पर चलते रहे,
किसी के मुँह से आह तक ना निकली
दोनों के पैरों से लहू निकलते रहे
अपनी-अपनी धुन में थे दोनों
एक दुसरे को दर्द देकर रोते रहे,
किसी का हाथ ना उठा आंसू पोछने को
दोनों की आँखों से झरने बहते रहे,
कभी मैं हाँ कहता रहा
कभी वो ना कहते रहे


Friday, 4 December 2015

दुआ है सब ठीक हो जाए

सोचा था ज़िन्दगी जियेंगे पर
ज़िन्दगी काटनी पड़ रही है,
मेरी ही ज़िन्दगी मेरे
अरमानों संग लड़ रही है
जवानी का हर खेलूँ
कितने अरमान थे दिल में मेरे,
तन्हाई और मज़बूरी ने अब
ले लिए हैं सात फेरे,
तन्हाई और मज़बूरी अब तो
हर वक़्त साथ में रहती हैं,
कभी मज़बूरी हमें भगाती है तो
कभी तन्हाई गले लगाती है
पैसों की अंधी दौड़ में
यारों दोस्तों के साथ छुट गए,
अरमान दिल में मरने लग गए
हम अन्दर ही अन्दर घुट गए |
जान पहचान सब खत्म हुई
रिश्ते नाते बदबूदार हो गए,
गलती करके भी है गर्दन ऊँची
देखो हम कितने खुद्दार हो गए
नई पीढ़ी को होश नहीं
हर वक़्त नशे में रहती है,
उनके लिए तो गंगा जमुना
दारु की बोतल में बहती है
शर्म हया सब खत्म हो गई
कलयुग के इस काल में,
दुआ है सब ठीक हो जाए
आने वाले नए साल में |


फेर म्हारे बीच में होया प्यार

म्हारे बीच में होया प्यार
जब मैं बनग्या उसका यार
घनी पुराणी बात है,
काली घनी रात थी,
सफ़र मेरा था कती अकेला,
फेर राह में एक नार मिली,
हाथ देके लिफ्ट मांगी,
जीन्स टॉप में थी तयार खड़ी
जब गाडी टॉप गेर में लाई,
वा हांस के बोली बतलाई,
बात बातां में माँगा नंबर,
तारिख थी उस दिन तीन सितम्बर
जब फ़ोन पे भीडे म्हारे तार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार..................
रात दस बजे मन्ने फोन मिलाया ,
दो घंटी बाजे पाछे फोन ठाया,
उस दिन बूंदा बांदी होवे थी,
वा पड़ी चादर में सोवे थी,
वा मेरे खयाला में खोरी थी,
न्यू मन्ने बैचेनी होरी थी
घर पे उसके था कोई भी कोन्या,
खड़ा होया मेरा ज़ालिम खिलौना,
वा घरा बुलाण ने होगी तयार
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार....................
ग्यारा बजे मैं उसके घरा गया,
फेर म्हारी खो गई शर्म हया,
कोली भरके बेड पे पड़ग्या
जुकर मिठाई पे मकोड़ा गड्ग्या

होठा-होठा सफ़र शुरू करा
फेर सेज सेज नीचे उतरा
एक राजा था दो सिपाई,
दो पहाड़ा बीच करी घुलाई
हम दोनूं होए कती लाचार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार,
मैं बनग्या फेर उसका यार....................
मन्ने तोड़ी फेर गुलाब कली
जुकर संतरे की फाड़ खुली,
आगे आई एक छोटी गुफा
राजा छोड़ सिपाई, उड़े घुसा
राजा जब भीतर चला गया,
सिपाई बोले राजा कड़े गया
राजा ने मिलगी रानी थी
या ख़त्म हुई कहानी थी,
‘प्रवेश शर्मा’ ने करया था यो करार,
फेर म्हारे बीच में होया प्यार
मैं बनग्या फेर उसका यार...................


Thursday, 3 December 2015

मेरे सनम काश तू मुझको समझ लेता

प्यार के दर्द से चल रही है ज़िन्दगी,
बूंद बूंद बर्फ जैसे पिघल रही है ज़िन्दगी
एक वादा था जो अंजाम तक ना पहुँच सका,
मौत के सांचे में अब ढल रही है ज़िन्दगी
मेरे सनम काश तू मुझको समझ लेता ,
अब रेत की तरह हाथ से फिसल रही है ज़िन्दगी
किस हक से अब तुझको पुकारूं ये बता,
शर्म के बोझ तले अब दब रही है ज़िन्दगी
कुछ गलतियाँ तेरी हैं कुछ खता मेरी भी है,
टुकड़ो-टुकड़ो में अब मेरी बंट रही है ज़िन्दगी
जहा भी रहना तू रहना सलामत,
तेरी बढ़ रही है मेरी घट रही है ज़िन्दगी
तू अपनी ज़िन्दगी संवार मेरे कुसूर न गिन,
जैसे तैसे चल रही है, मेरी चल रही है ज़िन्दगी
क्यूँ फर्क पड़ता है तुझे मेरे बर्बाद होने से,
जो तेरी थी अब वो मेरी हो रही है ज़िन्दगी
है तुझसे इश्क़ मुझे अब भी मेरे सनम,
पर तेरे लिए अब बोझ, मेरी हो रही है ज़िन्दगी
तुम ना रोना एक दिन मर जायेगा ‘प्रवेश’,
मौत है सस्ती, यहाँ महंगी बहूत हो रही है ज़िन्दगी

भूलना चाहता हूँ मैं उसकी यादें

हँसने दे मुझे हँसने दे,
रोने को रात काफी है.
तड़प रहा हूँ प्यार में जिसके ,
उसको एहसास दिलाना बाकी है,
धोखा दिया है हर शख्स ने,
मयखाना है साथ या फिर साकी है
भूलना चाहता हूँ मैं उसकी यादें,
जो मेरी तन्हाई की साथी है
सब दवा और दुआ बेकार है मुझपर,
जीने के लिए उसका एहसास काफी है,
अब देखना है उसको आबाद होते हुए ,
जो कहती है मरना मेरा बाकी है

Wednesday, 2 December 2015

हर रात के बाद सवेरा होता है

कितनी रातें बीत गई मैं सोया नहीं,
आँखें सूख गई पर मैं रोया नहीं,
इतना करके भी मैं कुछ पाया नहीं,
मेरा दरवाज़ा खटखटाने कोई आया नहीं,
इन्तजार करना कितना बुरा होता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है
|
दिन में भी मैंने ख्वाबों को सजाया,
आँख खुली तो कुछ भी ना पाया,
जो कहता था मैं हूँ तेरा हमसाया,
उसका भी मैंने कोई निशाँ नहीं पाया,
ज़िन्दगी का पन्ना मेरा कोरा रहता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है
जब मेरे यहाँ कभी रात आती है,
साथ अपने ग़मों की बरसात लाती है,
जुगनू की रौशनी भी हमें सताती है,
पर हमेशा लबों पर एक बात आती है,
यहाँ रात में भी कहाँ अँधेरा होता है,
पर हर रात के बाद सवेरा होता है |


Parvesh Kumar

कभ-कभी हैरान करे ज़िन्दगी

कभी-कभी आसान लगे ज़िन्दगी,
कभ-कभी हैरान करे ज़िन्दगी
,
पर अब तो रोज परेशान करे ज़िन्दगी

दूर उस खाली मैदान में कभी,
हँसते थे घंटो खेलते थे
,
पर आज वहां पैर रखने को जगह नहीं
पहले सुबह ताज़ी हवा खाते थे
पर अब हवा जहाँ से गुजरती है
वहां हर जगह ढेर हो गए गन्दगी
|
जमीं हो रही है रोज छोटी
जनसँख्या इस कदर बढ़ रही
कि इंसान को इंसान की कदर नहीं

मानवता ने प्राण त्याग दिये
इंसानियत कब्र पर लेट गई
अब सब खत्म हो गई बंदगी
मेरी हस्ती ऐसे खत्म हुई
मेरी परछाई मुझसे कहने लगी
अजनबी हो तुम भी अजनबी है हम भी
नफरत पलने लग गई दिल में
रिश्ते नाते सब भूल गया
अकेला रहना चाहा मैंने हर कहीं
अकेला रहकर हो गया परेशान
चैन नहीं है अब सुबह शाम
जीने का बचा अब कोई अर्थ नहीं
मौत को पाने की चाहत में
सवाल पूछा ख़ुदा से हर घड़ी
ऐ ख़ुदा क्यूँ दी है मुझे ज़िन्दगी


Parvesh Kumar