अपनी-अपनी जिदों पर अड़कर
नंगे पैर हम तलवार पर चलते रहे,
किसी के मुँह से आह तक ना निकली
दोनों के पैरों से लहू निकलते रहे
अपनी-अपनी धुन में थे दोनों
एक दुसरे को दर्द देकर रोते रहे,
किसी का हाथ ना उठा आंसू पोछने को
दोनों की आँखों से झरने बहते रहे,
कभी मैं हाँ कहता रहा
कभी वो ना कहते रहे
नंगे पैर हम तलवार पर चलते रहे,
किसी के मुँह से आह तक ना निकली
दोनों के पैरों से लहू निकलते रहे
अपनी-अपनी धुन में थे दोनों
एक दुसरे को दर्द देकर रोते रहे,
किसी का हाथ ना उठा आंसू पोछने को
दोनों की आँखों से झरने बहते रहे,
कभी मैं हाँ कहता रहा
कभी वो ना कहते रहे
No comments:
Post a Comment