Thursday, 17 December 2015

तू ही रहेगी मेरी “तृष्णा”

कहाँ गई तुम मुझे एक बार दर्शन देकर
बना दिया मुझे प्रेम पुजारी
आ जाओ मेरे सामने अपनी मुस्कान लेकर
दूर करदो अब मेरी बीमारी
तेरे प्यार में मैं पागल सा हो गया हूँ,
तुझे ढूंढता-ढूंढता रो रहा हूँ
कहाँ खो गई ऐ मेरे दिल की तमन्ना
बन गई हो तुम मेरी “तृष्णा”
तुझे पेड़ पत्तों में ढूंढता हूँ
नदियों, झरनों में खोजता हूँ,
ख्वाबों, ख्यालों में तुझे ही सोचता हूँ
ना मिलने पर दीवारों को नोचता हूँ
थोड़ी सी तो मेरी फ़िक्र कर
मैं रो-रो कर दिन काट रहा,
किसी से तो तू मेरा जिक्र कर
मैं बैठ बैठ कर रात जाग रहा
सच्चे प्यार की तू पहचान कर
मैं दिल से तुझे पुकार रहा
आकर मेरा तू हाथ थाम,
मैं पागलखाने की और भाग रहा
मेरा दिल तो तेरे पास है
मैं तो बिन दिल के जी रहा हूँ
बस तेर मिलने की ही आस है
वरना मैं तो पल-पल मर रहा हूँ
मेरा प्यार है बिलकुल पवित्र
तुझे भगवान् की तरह ढूंढा करता हूँ,
तुझसे मिलने के लिए हूँ मैं आतुर
रोज तेरी ही पूजा करता हूँ
तू जो ना मिली मुझे कल तक

फिर कल मुझे है मरना,
पर अगले सात जन्मों तक
तू ही रहेगी मेरी “तृष्णा” |

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