Sunday, 27 December 2015

क्या कर गया मैं इश्क़ की धुन में

रंगे है हाथ मेरे, मेरे ही खून से,
कर गया क़त्ल अपना ही जूनून में
बेवफाई के पत्थरों ने जख्मी किया,
रहना चाहता था वफ़ा के संग सुकून से,
जान से भी ज्यादा प्यार है जिनसे मुझे,
वो अब रहते हैं प्यासे मेरे खून के
कातिलों की बस्ती में आ गया खुद ही,
क्या कर गया मैं इश्क़ की धुन में
अपने खून से माँग भरने की ख्वाहिश थी जिनकी,
देख लेना एक दिन नहायेंगे वो मेरे खून में

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