एक दिन मुझे दोस्त मिला मेरा
उसने कहा सुना क्या हाल है तेरा,
मैंने कहा मज़बूरी से लड़ रहा हूँ
इसलिए दस घंटे की नौकरी कर रहा हूँ
उसने कहा तुम अजीब हो मियाँ
नौकरी तो हम भी करते हैं,
हम तो करते हैं मस्ती वहां
आप जैसे उसे मज़बूरी कहते हैं
उसने कहा मज़बूरी और मस्ती में
मियाँ कुछ तो तुम फर्क करो,
हमारे लिए तो दोनों एकसे हैं
आप ही हमारा भ्रम दूर करो |
मैंने कहा मुफ्त की सलाह बाज़ार में
थोक के भाव बिक जाती है,
जब लगती है वक़्त की चोट
आँखें अपने आप खुल जाती हैं
उसने कहा वक़्त का इंतजार करूँगा
लेकिन अभी मैं चलता हूँ,
तब तक आप वफ़ा करो मज़बूरी से
मैं मस्ती से रिश्तेदारी करता हूँ |
कुछ दिन बाद वो दोस्त मिला रस्ते में,
चलते-चलते मैंने हाल पूछा हँसते में
उसने कहा, वहां दिल लगाना दुश्वार हो गया,
इसलिए नौकरी से हमारा तकरार हो गया,
सोचा कुछ दिन घर पर बिताऊंगा,
पर घरवालों को ये नागवार हो गया,
अब सोचता हूँ कैसी भी नौकरी मिल जाये
और मैं नौकरी पाने को बेकरार हो गया |
मैंने कहा अभी सही वक़्त आया है
पर मज़बूरी को बेकरारी का नाम ना दो,
तुमने वक़्त का सिर्फ थप्पड़ खाया है
सब ठीक होगा, हिम्मत से काम लो,
मैंने कहा- रजाई में बैठकर दोस्त
दिसम्बर की सर्दी का अंदाज़ा लगाना ठीक नहीं,
किसी गरीब की मज़बूरी देखकर
अपनी मस्ती का जाम छलकाना ठीक नहीं |
टैक्स की चोरी करके नेता जी
महंगाई कम करने का भाषण तो दे जाता है,
पर महंगाई है चीज क्या? ये तो वो गरीब
जिसने पी है फीकी चाय, वो ही जानता है
उसने मेरा हाथ पकड़कर नम आँखों से कहा-
मियाँ आज ज़माने का सच समझ में आया है,
हर इंसान है मजबूर यहाँ पर
मस्त तो वही है जिसके पास माया है |
उसने कहा सुना क्या हाल है तेरा,
मैंने कहा मज़बूरी से लड़ रहा हूँ
इसलिए दस घंटे की नौकरी कर रहा हूँ
उसने कहा तुम अजीब हो मियाँ
नौकरी तो हम भी करते हैं,
हम तो करते हैं मस्ती वहां
आप जैसे उसे मज़बूरी कहते हैं
उसने कहा मज़बूरी और मस्ती में
मियाँ कुछ तो तुम फर्क करो,
हमारे लिए तो दोनों एकसे हैं
आप ही हमारा भ्रम दूर करो |
मैंने कहा मुफ्त की सलाह बाज़ार में
थोक के भाव बिक जाती है,
जब लगती है वक़्त की चोट
आँखें अपने आप खुल जाती हैं
उसने कहा वक़्त का इंतजार करूँगा
लेकिन अभी मैं चलता हूँ,
तब तक आप वफ़ा करो मज़बूरी से
मैं मस्ती से रिश्तेदारी करता हूँ |
कुछ दिन बाद वो दोस्त मिला रस्ते में,
चलते-चलते मैंने हाल पूछा हँसते में
उसने कहा, वहां दिल लगाना दुश्वार हो गया,
इसलिए नौकरी से हमारा तकरार हो गया,
सोचा कुछ दिन घर पर बिताऊंगा,
पर घरवालों को ये नागवार हो गया,
अब सोचता हूँ कैसी भी नौकरी मिल जाये
और मैं नौकरी पाने को बेकरार हो गया |
मैंने कहा अभी सही वक़्त आया है
पर मज़बूरी को बेकरारी का नाम ना दो,
तुमने वक़्त का सिर्फ थप्पड़ खाया है
सब ठीक होगा, हिम्मत से काम लो,
मैंने कहा- रजाई में बैठकर दोस्त
दिसम्बर की सर्दी का अंदाज़ा लगाना ठीक नहीं,
किसी गरीब की मज़बूरी देखकर
अपनी मस्ती का जाम छलकाना ठीक नहीं |
टैक्स की चोरी करके नेता जी
महंगाई कम करने का भाषण तो दे जाता है,
पर महंगाई है चीज क्या? ये तो वो गरीब
जिसने पी है फीकी चाय, वो ही जानता है
उसने मेरा हाथ पकड़कर नम आँखों से कहा-
मियाँ आज ज़माने का सच समझ में आया है,
हर इंसान है मजबूर यहाँ पर
मस्त तो वही है जिसके पास माया है |
No comments:
Post a Comment