उदास शाम में बैठा हूँ मैं हार थक के,
सोना चाहता हूँ मैं किसी गोद में सर रख के,
जहाँ ना रौशनी हो ना अंधकार हो,
ना किसी मंजिलों का इंतजार हो,
ना ख़ामोशी हो ना शौर का संसार हो,
ना दुश्मनी हो किसी से ना किसी से प्यार हो,
ना अकेलापन हो ना कोई भीड़ हो,
ना जगता रहूँ ना कोई नींद हो,
ऐसी कोई अवस्था हो,
जिसमे इन सबसे अलग कोई व्यवस्था हो,
ना संसार का मैं प्राणी रहूँ,
ना दुसरे गृह में वास करूँ,
बस ऐसा कोई आवास हो
जहाँ मैं सदा भगवान् का दास रहूँ
सोना चाहता हूँ मैं किसी गोद में सर रख के,
जहाँ ना रौशनी हो ना अंधकार हो,
ना किसी मंजिलों का इंतजार हो,
ना ख़ामोशी हो ना शौर का संसार हो,
ना दुश्मनी हो किसी से ना किसी से प्यार हो,
ना अकेलापन हो ना कोई भीड़ हो,
ना जगता रहूँ ना कोई नींद हो,
ऐसी कोई अवस्था हो,
जिसमे इन सबसे अलग कोई व्यवस्था हो,
ना संसार का मैं प्राणी रहूँ,
ना दुसरे गृह में वास करूँ,
बस ऐसा कोई आवास हो
जहाँ मैं सदा भगवान् का दास रहूँ
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