Friday, 18 December 2015

गुनाह हो गया है अब मोहब्बत करना

दर्द ने मेरे मुझे कैसा सिला दिया,
किया बर्बाद मुझे ख़ाक में मिला दिया
खुशियों के ख्वाब बुनता था मैं,
मुझे गम के सागर में डूबो दिया
वफ़ा को ही अंजाम समझा था मैंने,
क्या खता हुई जो मुझको दगा दिया
आरजू क्या क्या दिल में सजा रखी थी,
मुझे मेरी गरीबी का एहसास दिला दिया
‘प्रवेश’ गुनाह हो गया है अब मोहब्बत करना,
ये हक़ भी सिर्फ अमीरों को दिया गया

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