Thursday, 24 December 2015

वो बने मेरी ’वधु’ मैं उसका ‘वर’

हजारों मील तुम मुझसे दूर चले गए,
मेरे ही घर में मुझे तन्हा कर गए
तुम्हारी कितनी होती है मुझे फ़िक्र
जैसे मेरे शरीर से निकल रहा हो जिगर
कैसे मैं एक-एक पल काटता हूँ
ख़ुदा से तुम्हारा साथ ज़िन्दगी भर मांगता हूँ
तुम्हारे आने तक क्या होगा मेरा मैं नहीं जानता,
मैं रहूँ न रहूँ तू तहे सलामत यही मांगूं मन्नता
रास्ते पर इंतजार में रहे नजर सुबह-शाम, दोपहरी
जैसे बाग़ में पहरा दे रहा हो कोई पहरी
मुझे ना सोचना तुम अपना रखना ख्याल
तुम रहोगे खुश तो मैं भी रहूँगा खुशहाल
हर घड़ी मैं तुम्हारे लिए रहता हूँ बैचेन
रो-रो कर तुम्हारी याद में थकते नहीं नैन
ऐ ख़ुदा मुझपर कोई ऐसा करिश्मा कर,
वो बने मेरी ’वधु’ मैं उसका ‘वर’
अब और इंतजार ना दिल चाहता है,
बस रूह से उसका दुलार चाहता है
इंतजार करके थक चुका है शरीर,
ऐ ख़ुदा करदे मुझे आज़ाद खोल दे ज़ंजीर
सारी बंदिशे तोड़कर उनसे मिलना है,
दुनिया का क्या इसका तो काम जलना है
ऐ ख़ुदा मर जाऊंगा गर अब करना पड़ा इंतजार
उसे कर मेरा और मुझे उसका मेरा रोम-रोम रहा पुकार


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