Wednesday, 11 November 2015

मैंने देखा है इन दर्द भरी आहों से


बचपन के झूलों से
जवानी के मेलों तक का सफ़र
मैंने देखा है इन दर्द भरी आहों से.........
सोते हुए कदमो से
जाना है कहाँ तक, पूछा है
इन भागती हुई राहों ने........................
छोटी सी मंझी में
माँ की लौरी से
सो जाते थे पलभर में
अब मलमल के बिस्तर में
ठंडी ठंडी हवाओं से
नींद नहीं निगाहों में..............................
बचपन के झूलों से
जवानी के मेलों तक का सफ़र
मैंने देखा है इन दर्द भरी आहों से.........
मिट्टी के घरोंदो में
मासूम सी खुशियों से
दिन कट जाते थे पलभर में,
अब बिजली के सामानों से
बनावट की दुनिया में
चैन नहीं किसी की बाहों में ..................
बचपन के झूलों से
जवानी के मेलों तक का सफ़र
मैंने देखा है इन दर्द भरी आहों से...........
झूठे-झूठे चेहरों में 
नफरत की नजरों से
मैंने इक चेहरा तलाशा है,
पर चांदी की चमक से
दौलत की मोहब्बत में

अनजान है वो वफाओं से ........................
बचपन के झूलों से
जवानी के मेलों तक का सफ़र
मैंने देखा है इन दर्द भरी आहों से.............


Parvesh Kumar


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