कभी मिट्टी में हरियाली लगती है,
कभी हरियाली में मिट्टी दिखती है,
अब तो अहर बेरोजगार से मुझको
कोई ना कोई रिश्तेदारी लगती है.
भगवान् ने बाँट दी थी सारी अच्छाई
बाद उसके मेरी किस्मत जगती है,
अब मेरी ही परछाई मुझको
सरे-आम ठग ले जाती है.
हर एक चौराहे की बत्ती
मुझे देखते ही बुझ जाती है,
दूर कहीं जब जाकर वो
सड़क ख़त्म हो जाती है
तब जाकर मेरे सपनो की
वो पगडंडी शुरू हो जाती ही.
मुझे लगा था मेरी किस्मत खुल चुकी है
पर इतना दूर तक चलते-चलते,
मेरे पैरों पर धुल जम गई ,
मुझे लगा था मैं भी चलूँगा ज़माने के संग
पर इतनी मिन्नत करते-करते
मेरी बाकी जिंदगानी भी थम गई,
सोचा पीने को मिल जाए पानी
पैर धोने को जल हो ना हो,
हर पल को जीना चाह मस्ती में
ये सोचकर कि कल हो ना हो
Parvesh Kumar
No comments:
Post a Comment