मुझे दश्त-ऐ-तन्हाई
मिली तेरी जुदाई से,
मुझे मिले अश्कों के सागर तेरी जुदाई से.
इश्क़ की इबादत करके टकराया चट्टानों से,
अब तो लगता है डर ख़ुदा तेरी खुदाई से.
क्यूँ है बेकरार इतना मौत के लिए “प्रवेश”,
जान जाओगे किया कभी इश्क़ गर हरजाई से.
इश्क़ की इबादत करके टकराया चट्टानों से,
अब तो लगता है डर ख़ुदा तेरी खुदाई से.
क्यूँ है बेकरार इतना मौत के लिए “प्रवेश”,
जान जाओगे किया कभी इश्क़ गर हरजाई से.
Parvesh Kumar
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