Saturday, 7 November 2015

प्यार करता हूँ तुमसे मगर

प्यार करता हूँ तुमसे मगर तुम्हे अपना नहीं सकता,
हाय रस्मे दुनिया की तुम्हे अपना बना नहीं सकता.
मेरी छोटी सी खता पे वो खफ़ा हो गयी.
मुँह से निकली बात को मैं वापिस ला नहीं सकता,
मेरी सारी बस्ती में हैं खौफनाक अँधेरें,
रोशनी के लिए मैं अपना घर जला नहीं सकता.
हैं कंधो पे मेरे बोझ कई सारे ,
अब कंधो से नीचे भी उनको उतार नहीं सकता.
दिल में नस्तर सा चुभो गई है एक बात,
उस बात को दिल से भी निकाल नहीं सकता.
मुझको क्या संभालोगी तुम खुद संभल जाओ,
मेरी डूबती कश्ती को कोई पार लगा नहीं सकता.
अपने हाल पर खुश है “प्रवेश” उसे रहने दो,
आग के घेरों में हर कोई घर बना नहीं सकता

            Parvesh Kumar 




3 comments:

  1. कितनी खूबसूरती से पिरोये हैं शब्द मैं बता नहीं सकता।।।

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    1. शुक्रिया नवीन भाई

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