Saturday, 7 November 2015

वो है आसमां में मुस्कुराते अकेले चाँद सा


बहोत बार की है कोशिश लेकिन हरदम हारा हूँ,
औरों की दुआओं के लिए टूटने वाला तारा हूँ.
खुद की ख़ुशी तो ख़ुदकुशी जैसी है,
औरों के काम आऊँ तब तक ही प्यारा हूँ.
इस हाल में मुझे खुश देखकर हैराँ हैं लोग,
मैं अपनी बर्बादी पर हँसता हूँ इंसान न्यारा हूँ.

वो है आसमां में मुस्कुराते अकेले चाँद सा ,
उन तक ना पहुँच सका मैं वो सितारा हूँ.
वो महफ़िल में मुस्कुराये अफसाना बन गया,
मेरे रोने पे कोई न आया किस्मत का मारा हूँ.
मारता है ठोकर इस ऐशो आराम को ”प्रवेश”,
दुनियावालों फिर न कहना कि मैं आवारा हूँ


Parvesh Kumar

No comments:

Post a Comment