गुनाह की कमी नहीं धरती पर
चोरी-चकारी, लूट- खसौट,
कोई हत्यारा है कोई बलात्कारी
खाकी वाले भी कलंक हो गए खाकी पर.
एक और गुनाह है यहाँ पर बन्दे
जो इन सबसे थोडा अजीब है,
सबसे बड़ा गुनाह है ये
गर तू यहाँ पर गरीब है.
गुनाहों का पर्चा और भी है
ये तो फिर भी ठीक है,
एक और गुनाह ये है तेरा
के तू गरीब के साथ शरीफ है.
चालाकी की चोला औढ ले
तभी गरीबी कोहरा पायेगा,
शराफत के पायजामे में तो
चैन से सांस तक ना ले पायेगा.
अमीरो की परछाई से तू
रूह फ़ना क्यूँ करता है,
ये सोच कर हर कदम बढ़ा
कि जो डरता है वो मरता है
Parvesh Kumar
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