Sunday, 15 November 2015

क्या तुम्हे भी हिचकियाँ नहीं आती ?


      जितनी तकलीफ़ और तड़प इस जाड़े के मौसम से होती है उतनी तो उस बेवफा की जुदाई के वक़्त भी नहीं हुई थी | ऊपर से उसे ये गुमान कि बेवफाई उसने नहीं मैंने की है | लेकिन सच बताऊँ तो हमने अपने दिलों को अपने-अपने तरीके से समझा लिया है और एक दूसरे को हरजाई कहकर खुद का अपराधबोध कम कर लेते हैं | हम दोनों में से, दरअसल, बेवफ़ा कोई नहीं है, मैं थोड़ा बदतमीज हूँ और वो थोड़ी बददिमाग | अब हम एक दूसरे को याद नहीं करते, बस भूलने की कोशिशों में लगे रहते हैं |
      तुम्हारा तो पता नहीं कि कितना याद करती हो | ना तो मुझे कोई हिचकी ही आती है ना facebook और whatsapp पर तुम्हारा जवाब | शायद भूल ही गयी हो, थोड़ा पत्थर दिल तो तुम हो ही | क्यों ? इसमें झूठ क्या है ? तुम खुद भी तो पहले स्वीकार करती थी लेकिन जब से अलग हुई हो पुरानी बातें सब भूल गयी हो | अच्छा एक बात बताओ, क्या तुम्हे भी हिचकियाँ नहीं आती ?
      जानता हूँ, तुम यही कहना चाहती हो ना कि कभी मैं याद करूँ तो हिचकी आये | तुम्हे सच बताऊँ आज तुम्हे किस कदर भुलाने की कोशिश की है |
      सर्दियाँ शुरू होने के बाद आज पहली बार सुबह को बाहर निकला | काफी लम्बा सफ़र था और बाइक से जा रहा था | बाइक पर ठंडी हवाओं ने भीतर तक सब ठंडा कर दिया | मुझे तुम्हारी याद आई और लगा तुम कहीं आसपास हो | दिल्ली से बाहर, तुम्हारे शहर से दूर जा रहा था | लेकिन तुम बड़ी दुष्ट हो, तुम कैसे जाने देती मुझे खुद से, अपने शहर, अपनी नज़रों से दूर | तुम्हे मज़ा जो आता है मुझे तड़पते हुए देखने में |

      तुम्हारे शहर की सीमा से बाहर निकला ही था कि धुंध ने सारा दृश्य धुंधला कर दिया | मालूम नहीं अब धुंध को तुमने भेजा था या तुम खुद धुंध बन कर आई थी | मुझे तो लगता है तुम खुद ही थी | पुरे सफ़र मुझे रास्ता भुलाने की कोशिश करती रही |
      तुम ही थी मुझे यकीन है क्योंकि तुमने ओस बनकर मुझे छुआ था | तुम्हारा सपर्श अभी भी मेरी स्मृतियों में बसा हुआ है | मेरे सर, पलकों और मेरी छोटी-छोटी मूछों को तुम कैसे ओस की बूँद बनकर छू रही थी | अब तुम चुप रहो, ये मेरा सच है या जो भी हो | मुझे तुम्हारी सफाई नहीं चाहिए कि तुम नहीं थी | मुझे मालूम है तुम ही थी, बस तुम ही थी |
अच्छा एक बात बताओ, आजकल रातों में तुम्हे इतना जल्दी नींद कैसे आ जाती है | मैं तो देर रात तक करवटें बदलते रहता हूँ और सोचता हूँ कि अब करवट बदलूँगा तो बगल में तुम लेटी मिलोगी | और मुझे आगोश में भर लोगी, कभी ना अलग होने के वादे के साथ | आज की रात भी यूँ ही गुजर गयी | ना तो तुम्हे भूल पाया और ना करवट बदलने पर तुम ही मिली | लेकिन एक वादा करो, बस आख़िरी वादा | अगर मुझे कभी हिचकी आई तो मैं तुम्हे बताऊंगा और अगर तुम्हे हिचकी आई तो तुम भी मुझे facebook या Whatsapp करोगी | मुझे पता है आज तुम्हे हिचकी आई है | अब प्लीज Message कर दो | मैं Facebook पर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ |


Writer – Parvesh Kumar 

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