Saturday, 7 November 2015

सोया सोया चुपचाप सा हो जिश देश का राजा


नौकरी पाने की खातिर सिफ़ारिश कहाँ से लाऊं मैं,
घूस के लिए पैसों का जुगाड़ कैसे बिठाऊं मैं,
मेरी झोली खाली है, गरीबी का है साया मुझपर,
कैसे भूखे भेडियों को अब दावत खिलाऊँ मैं,
सोया सोया चुपचाप सा हो जिश देश का राजा,
उस देश की जनता को अब कैसे जगाऊँ मैं,
बाज़ारों में नंगा नाच हो रहा सियासत का ,
सबकी आँखें ढक ले इतना थान कहाँ से लाऊं मैं,
शहरों में भीड़ है चलती फिरती लाशों की,
ऐसी लाशों के लिए नया शमशान कहाँ से लाऊं मैं ,
बड़े बुजुर्गो ने कहा सब ठीक होगा एक दिन,
कब होगा, इतना इत्मिनान कहाँ से लाऊँ मैं.
बेईमानी के सौदे होते हैं जाकर सुनसानो में ,
कैसे सुनूं अब किस दीवार पर कान लगाऊं मैं,
जहाँ जाओ सांप-बिच्छू की तरह डसते हैं लोग ,
अकेला अब किस किस का ईमान जगाऊँ मैं,
देखना सोचना छोड़ दिया, अब शरीर हूआ क्षीण “प्रवेश”,
बहूत लगाई जान अब और जान कहाँ से लाऊँ मैं


Parvesh Kumar

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