आ गई सर्दी अब लगता नहीं मन,
सुनसान है मेरे दिल की सरहद,
सूना पड़ा है मेरा आँगन.
बस मेरे घर में है अँधेरा ,
बाकी पूरा शहर है रोशन.
निकला हूँ मैं मोहब्बत की तलाश में,
कभी है गम-ए-रात कभी गम-ए-दिन.
पड़ी है शबनमी ओस की बूंदे,
शीली हवाओं से होती है चुभन,
पुकारा है वफाओं को बिना रुके,
निकलते है आंसू दुखता है मन,
सूख गया है अश्कों का समंदर,
कैसे बुझाऊँ अन्दर की अग्न.
ख़ाक हो गया एक और परवाना,
उजड़ गया आज एक और चमन
Parvesh Kumar
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