चेहरे पर कई तरह के चिन्ह लिए
मैं साक्षात्कार के लिए जा रहा था,
हर चिन्ह चेहरे पर ऐसे उभर रहा था
की कोई पढना चाहे तो ऐसे पढ़ ले
जैसे किताब पढ़ रहा हो.
तभी एक कॉलेज के विधार्थी पर नजर पड़ी
चेहरे पर उसके चमक थी,
मैंने कहा अभी बाहर से तू अनजान है
इसलिए तू हंस रहा है,
कॉलेज के बाहर की दुनिया को देख
बेरोजगारी का सांप सबको डस रहा है.
उसने कहा जो ठीक से नहीं पढ़ते
वे ही इसके शिकार होते हैं,
मेरे जैसे तो अब भी खुश हैं
और बाद में भी यूँ ही हँसते हैं.
मेरे दिल को उस पर तरस आया
मैंने उसको ये समझाना चाहा,
क्यूँ ग़लतफहमी में तू जीता है
जब सच जानेगा तो खुद पछतायेगा,
देखेगा अनपढ़ों को करोड़ों में खेलते हुए
तो अपनी डिग्रियों को देख देख कर रोयेगा.
मैंने कहा अभी बाप के पैसों पर पल रहा है
घर में मुफ्त का चारा चर रहा है,
जब सब कुछ खुद से करना पड़ेगा
तब पैसों की कीमत को जानेगा,
जब धुप में दिनभर घूमना पड़ेगा
और हाथ में कुछ ना आ पायगा.
जब देखेगा सौ में से नब्बे प्रतिशत लोग
सिफारिशों से नौकरी पाते हैं,
तब इन्टरनेट के सारे विकल्प
झूठे साबित हो जाते हैं.
कभी यहाँ से कॉल, कभी वहां से फ़ोन
रोज होगी साक्षात्कारों की अंधी दौड़,
जब रोज नए कारणों से नाकारा जाएगा
खुद को पाएगा हर जगह अकेला और
हर अपना तुझे दुश्मन नजर आएगा.
अभी जाने क्या-क्या सच सुनने बाकि है
अभी से उसकी आँखें भर आयीं हैं,
मैं तो ये सोचकर हैराँ हूँ
कि जो है भविष्य देश का
उसी की हालत जर्जरायी है
Parvesh Kumar
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